Araria

Wednesday, December 15, 2010

एक दर्जन से अधिक महादलित परिवार रह रहे शौचालयों में

अररिया, संसू: दलित -महादलित के नाम पर सरकार व प्रशासन कई कल्याणकारी योजनाएं चला रहे हैं। बाजवूद महादलित परिवारों तक उसका लाभ नहीं पहुंच पाया है। अररिया में आज भी दर्जनों महादलित परिवार विभिन्न शौचालय में जिंदगी गुजारने को विवश हैं। उन्हें रहने के लिए आज तक न तो जमीन मिल पाया है और न ही मकान। जबकि राज्य सरकार ने भूमिहीन महादलित परिवारों को बसाने के लिए तीन डिसमिल जमीन मुफ्त देने की घोषणा कर चुकी है। साथ ही उस पर इंदिरा आवास बनाने का निर्देश भी प्रशासन को दिया गया है। लेकिन इसका फायदा आज तक जिला मुख्यालय स्थित शौचालयों में रहने वाले दर्जनों महादलितों को नहीं मिला है। इस संबंध में अपर समाहत्र्ता कपिलेश्वर विश्वास बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के महादलित परिवारों को जमीन व आवास देने की सुविधा अवश्य है जबकि शहरों में रहने वाले ऐसे परिवारों के लिए अभी कोई राशि नहीं है।
अररिया शहर के समाहरणालय भवन से सटे नगर परिषद का सुलभ शौचालय, सदर अस्पताल शौचालय तथा जिला परिषद के विकास मार्केट स्थित शौचालय आदि जगहों के अलावा पलासी प्रखंड मुख्यालय में बने शौचालय में दर्जन भर से अधिक सफाई कर्मी व उनके परिवार जिंदगी काट रहे हैं।
जिला सांख्यिकी भवन के निकट शौचालय में परिवार लेकर रहने वाले नंद लाल मल्लिक ने कहा कि डीएम से लेकर कमिश्नर तक से फरियाद लगायी लेकिन आज तक कहीं भी रहने के लिए जमीन नहीं दिया गया। वहीं नप के शौचालय में पिछले 15 वर्षो से पूरे परिवार के साथ जीवन काट रहे दुखा मल्लिक की कहानी कुछ अलग ही है। वे कहते हैं कि सभी महादलितों के नाम पर राजनीति करते हैं, घोषणा करते हैं लेकिन हम तक कुछ नहीं पहुंच पाता। वहीं अस्पताल के शौचालय में रहने वाले सुरेश मल्लिक तथा विकास मार्केट शौचालय में रहने वाले मैना मल्लिक ने बताया कि हमलोग डीएम के जनता दरबार तक अपनी समस्या को लेकर गुहार लगा चुके हैं लेकिन इतने दिन बीत जाने के बावजूद अब तक जमीन, आवास नहीं मिला। वे कहते हैं कि इसी शौचालय में बच्चे का जन्म भी होता है तथा यहीं से अर्थी भी उठती है।
इस संबंध में अपर समाहत्र्ता कपिलेश्वर विश्वास का कहना है कि महादलित समुदाय को तीन डिस्मिल जमीन देने का प्रावधान सिर्फ ग्रामीण इलाकों के लिए है। शहरी क्षेत्र के शौचालय में महादलित समुदाय के रहने की उन्हें जानकारी तक नहीं है।
कुल मिलाकर राजनेता भी महादलित के नाम पर अपनी राजनीति की रोटी सेंकते हैं। और उनके लिए आवाज नहीं बुलंद कर पाते हैं।

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