Araria

Saturday, January 1, 2011

अररिया में हो रही विकास को पटरी पर लाने की कवायद

अररिया : नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास बसे अररिया जिले में विकास की गाड़ी को पटरी पर लाने की कवायद हो रही है। लेकिन उद्योग धंधों का सर्वथा अकाल, सरकार व उसके तंत्र की उदासीनता, गरीबी व अशिक्षा के कारण मंजिल अब भी कोसों दूर नजर आती है। हालांकि चमचमाती फोर लेन पथ व अररिया सुपौल राजमार्ग को अगर विकास का इंडेक्स मानें तो अररिया विकास की राह पर आरूढ़ लगता है, भले इसकी रफ्तार धीमी ही क्यों न हो।
जहां तक सड़कों का सवाल है अररिया में बात दूर तक गयी है। गांव गांव में सड़कें नजर आती हैं। पलासी, जोकीहाट, नरपतगंज व कुर्साकाटा जैसे इलाकों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्र में सड़क बन जाने से फर्क साफ दिखता है। लेकिन केवल सड़क बन जाने से रोजगार तो नहीं मिल सकता। जिले में उद्योग धंधे नहीं और शायद यही कारण है कि रोजगार के नये अवसर भी सृजित नहीं हो रहे।
मौजूदा दौर में जिले के अंदर कार्यरत प्लाई वुड फैक्ट्रियां जरूर रोजगार दे रही हैं। लेकिन अवसर सीमित ही हैं।
राजग सरकार के पहले कार्यकाल में फारबिसगंज अनुमंडल के गोगी पोठिया गांव में इथेनाल कारखाना लगाने की बात चर्चा में आयी थी। जिला प्रशासन ने इसके लिये जमीन भी चिंहित की, लेकिन केंद्र सरकार की एनओसी के पचड़े में पड़ कर बात ठंडे बस्ते में चली गयी। वहीं, बिजली की कमी व वित्तीय सुविधाओं के अभाव के कारण छोटे व कुटीर उद्योग भी नहीं पनप रहे। इस बात में संदेह नहीं कि रंगदारी व गुंडागर्दी जैसी बातों पर अंकुश लगने के कारण अब माहौल में सुधार हुआ है। लेकिन उद्यमियों को प्रोत्साहित कौन कर रहा? प्रशासन की ओर से पहल नगण्य है। बैंकों की ओर से किया गया अधिकांश वित्त पोषण एनपीए की जद में जा रहा है।
जानकारों के मुताबिक जिले में लगभग एक सौ ऐसे स्थान हैं, जिनका पर्यटन की दृष्टि से महत्व है, लेकिन वे अविकसित हैं। सरकार की ओर से उनके विकास की पहल हुई, लेकिन ढीली ढाली। प्रशासन ने भी पर्यटन स्थलों के विकास के नाम पर केवल खानापूरी की। तो फिर कैसे तेज होगी विकास यात्रा की गति?
जिले में बकरा, परमान, कनकई, रतवा, नूना व दीगर नदियां हैं, जिन पर बांध बना कर पन बिजली प्राप्त की जा सकती है। लेकिन बथनाहा में शिलान्यास के बावजूद पनबिजली उत्पादन कार्य शुरू नहीं हो पाया। क्या कोई बगैर बिजली विकास की कल्पना कर सकता है?
जिले का मानव संसाधन अपार है। लेकिन सरकार व प्रशासन की पहल के अभाव में यहां के चार लाख से अधिक युवा अपनी जन्मभूमि नहीं बल्कि हरियाणा पंजाब के गांवों की किस्मत संवार रहे हैं।
दरअसल, वर्षो की उपेक्षा से बेपटरी हो चुकी विकास यात्रा को पटरी पर आने में अभी सालों लगेंगे। जरूरत ईमानदार कोशिश की है।

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