Araria

Thursday, January 26, 2012

नहीं तलाशे जा रहे पारंपरिक ऊर्जा के विकल्प


अररिया : बिजली की बदहाली से हलकान अररिया जिले में संभावनाओं के बावजूद वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के विकास पर कार्य नहीं हो रहा है। बथनाहा के पास लघु हाइडेल प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन से उम्मीद जरूर बंधी है, पर बायो मास व बायो गैस आधारित ऊर्जा संयंत्रों के विकास को तवज्जो नहीं दी जा रही।
जिले में बिजली की बढ़ती जरूरतों के अनुरुप विद्युत आपूर्ति भी नहीं हो रही है। शायद इसी का नतीजा है कि लोगों को मुश्किल से चार घंटे ही बिजली मिल पाती है। उसमें भी वितरण व्यवस्था की खामी अक्सर सेंध लगा देती है।
इस जिले में बहने वाली परमान, बकरा, रतवा, कनकई, लोहंदरा व नूना जैसी नदियों पर छोटे डैम बना कर जिले की जरूरत से फाजिल बिजली उत्पन्न की जा सकती है। लेकिन बथनाहा के अलावा अन्य किसी स्थान पर पन बिजली यूनिट नही लगायी जा रही है।
जानकारों की मानें तो नदियों पर लघु डैम व बराज बना कर खेतों की सिंचाई व्यवस्था में भी कई आयाम जोड़े जा सकते हैं।
वहीं, पारंपरिक ऊर्जा के विकल्प की ओर तो सरकारी पहल हो ही नहीं रही। हालांकि जोकीहाट के बहरबाड़ी गांव में देसी पावर कोसी नामक संस्था द्वारा बायो मास आधारित ऊर्जा संयंत्र लगा कर एक राह जरूर दिखायी गयी है, लेकिन इस दिशा में सरकारी पहल नगण्य है। बहरबाड़ी संयंत्र के बारे में संस्था के निदेशक बुल्लु शरण ने बताया कि यह संयंत्र पूरी तरह इकोफ्रेंडली है और इसके गैसीफायर को चलाने के लिए गांव में बहुतायत से मिलने वाले ढैंचा प्लांट का इस्तेमाल किया जाता है। इससे न केवल बिजली मिलती है बल्कि इससे मिलने वाले गर्म पानी का इस्तेमाल धान को उबाल कर चावल तथा चूड़ा बनाने में किया जाता है और अंतत: उस पानी से खेतों की सिंचाई
की जाती है। ताज्जुब है कि बिजली की बदहाली के बावजूद बहरबाड़ी जैसे संयंत्र जिले में अन्य स्थानों पर भी लगाने की सरकारी पहल नहीं हो रही।
सोलर लाइटों को लेकर जिले में बड़ी राशि खर्च की गयी है। सूत्रों के मुताबिक इस मद में अब तक तकरीबन पांच करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है। लेकिन भ्रष्टाचार के दीमक ने सोलर लाइटों को रोशन होने से पहले ही गुल कर दिया है। अस्सी के दशक में सरकार द्वारा प्रारंभ की गयी बायो गैस व गोबर गैस परियोजनाओं का भी यही हश्र हुआ है। एक विकल्प पवन चक्की का भी है। विगत एक दशक से अररिया जिले में आंधियां लगातार आ रही हैं। इनसे जान माल की क्षति भी होती है, पर कुदरत के इस क्रोध को वरदान में तब्दील करने के लिए विंड मिल (पवन चक्की) जैसे विकल्पों पर अब तक विचार भी नहीं किया गया है।

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