Araria

Thursday, June 14, 2012

कागज की किश्ती पर बारिश का पानी


अररिया : परमान की की गोद मे बसे अररिया जिले में रेन वाटर हार्वेस्टिंग ऐसी अवधारणा है जो परवान नहीं चढ़ रही। यह बात अलग है कि पानी की कमी अब यहां भी दस्तक देने लगी है। इतना जरूर है कि पानी बचाने की कोशिश आमजन के बीच चर्चा का विषय बनी है। लेकिन वर्षा जल संरक्षण की अवधारणा अभी कागज की किश्ती पर ही तैर रही नजर आती है।
अररिया जिले के नदियों के पास लगभग तीस हजार वर्ग किमी जल ग्रहण क्षेत्र है तथा इस विशाल क्षेत्र में बारिश के दिनों पड़ने वाला पानी हर साल बेकार बहकर समुद्र में चला जाता है। सरकार ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए शहरी इलाके में भले ही नीति बना दी हो, अररिया में उसका अमल होता नहीं दिख रहा। जिले में नक्शा पास करने के लिए अधिकृत आर्कीटेक्ट राजीव कुमार ने बताया कि अब तक यहां ऐसी कोई योजना प्रारंभ नहीं हुई है। यदि सरकार का निर्देश मिलेगा तो वैसा ही किया जायेगा।
इधर, कई जानकारों का मानना है कि अररिया जैसे शहर में जहां की ऊपरी सतह बालू से भरी है, रेन वाटर की हार्वेस्टिंग अच्छी योजना है। फ्लड के दौरान गढ्डों में जमा बारिश का पानी बाद में सिंचाई के काम आता है। जिलेवासियों को इससे खेती में मदद मिलती है। फोरलेन सड़क, कुरसेला फारसिबगंज तथा अररिया सुपौल स्टेट हाइवे के निर्माण के दौरान मिट्टी के लिए कई जगह गढ्डों का निर्माण किया गया। इनमें बारिश के दिनों में करोड़ों घनफुट पानी जमा हुआ। बाद में ये गढ्डे मछली व पानी का भंडार बनकर सामने आये, जिनकी जमीन थी, उन्हें बेहद आर्थिक लाभ हुआ। पर्यावरण प्रेमियों की मानें तो ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। क्योंकि इससे ग्राउंड वाटर की रिचार्जिग में महत्वपूर्ण मदद मिलती है। वहीं, मछली से लोगों को अतिरिक्त आय भी हो जाती है।
जानकारों के मुताबिक पुराने दिनों में इस इलाके में बारिश के पानी के संग्रहण की कुदरती व्यवस्था थी। कोसी सहित यहां की तकरीबन सभी नदियां अक्सर धारा बदलती रहती हैं। धाराओं के बदलाव से नदी की मृत धारा जल का बेहतरीन भंडार बन जाती थी। शायद यही कारण था कि यहां का भूगर्भीय जल स्तर बिहार के दूसरे जिलों से बेहतर था। जलस्तर ऊंचा होने के कारण भूगर्भ में जल का दाब अधिक होता था। इसी का नतीजा था कि इस जिले की जमीन से एक दर्जन से अधिक नदियों का उद्गम होता था। आज की तारीख में ये सूख चुकी हैं। जाहिर है कि बारिश के जल को नहीं बचाने का खामियाजा सामने आने लगा है।
प्रमुख बिंदु
-नक्शा पास करने में नहीं होता रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रावधान
-खरबों घनमीटर पानी हर साल बहकर समुद्र में चला जाता है बेकार
-सिल्ट डिपाजिट के कारण वर्षा जल आधारित जल स्रोत हो गए विलुप्त
-नगर क्षेत्र में घर के पानी की नहीं होती रिसाइक्लिंग
- सरकारी नल कूपों से बेकार बहता है पानी
-पीसीसी सड़कों पर बहने वाला जल वाष्पीकरण के कारण नहीं पहुंचता भूगर्भ में

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