Araria

Sunday, June 17, 2012

वर्षा जल संरक्षण से फायदे ही फायदे


अररिया : वर्षा जल को संरक्षित करने के प्रयास भले ही अभी प्रारंभिक अवस्था में हों, ग्रामीण जन इसके लाभ को समझने लगे हैं। खासकर इससे किसानों को सिंचाई, मछली पालन व खेतों की हरियाली बरकरार रखने में खूब मदद मिल रही है।
जहां तक जिले में सरकारी व निजी बिल्डिंगों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रयासों का सवाल है, अभी तक ऐसा कहीं देखने को नहीं मिल रहा। हां, इस बात की चर्चा जरूर हो रही है। सरकार ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए कई दिशा-निर्देश जारी कर रखे हैं, लेकिन उन पर अभी अमल शुरू नहीं हुआ है। अररिया सहित पांच जिलों के लिए नक्शा स्वीकृत करने के लिए अधिकृत आर्कीटेक्ट राजीव कुमार के अनुसार इस वक्त सरकारी व निजी भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रावधान नहीं हो रहे हैं, लेकिन प्रशासन से निर्देश मिलने के बाद इन पर अमल जरूर किया जायेगा।
इस जिले में पानी को संजो रखने का पारंपरिक तरीका काबिले गौर है। यहां के ग्रामीण अपने खेतों के आसपास मिट्टी भराई के लिए बने गढ्डों में पानी बचाते हैं तथा उनका उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए करते हैं। इतना ही नहीं, इससे उन्हें अपने अगल-बगल के खेतों की हरियाली को बचाने में मदद भी मिलती है।
पलासी के ग्रामीण शिवानंद विश्वास ने बताया कि गर्मी के दिनों में जब आसपास के तलैये सूख जाते हैं तो मवेशियों को नहलाने व पानी पिलाने में भारी दिक्कत होती है। लेकिन बारिश आते ही इनमें पानी भर जाता है, जिससे मुश्किलें कम हो जाती हैं। इतना ही नहीं बाढ़ के पानी के साथ आयी मछलियों से थोड़ी बहुत आय भी हो जाती है।
वर्षा जल संरक्षण के लिए जिला प्रशासन द्वारा तालाब निर्माण व जीर्णोद्धार के उपायों से निश्चय ही फायदा मिलने की संभावना है। इस जिले में पहले से तकरीबन 22 सौ सरकारी व लगभग तीन हजार निजी जलाशय हैं। ग्रामीणों की मानें तो इनसे पशु पालन व पानी के अन्य उपयोग में मदद मिलती है। तालाब में जल के संरक्षण से मछली पालन तथा खेतों की सिंचाई में फायदा पहुंचता है।
इधर, पर्यावरण प्रेमी युवा मुकेश कुमार की मानें तो शहर में प्रतिदिन बेकार बहने वाले लाखों घन फुट पानी का ट्रीटमेंट कर उसे संरक्षित किया जाना बेहद जरूरी है। क्यों कि नालों का गंदा पानी परमान व कोसी धार में बेकार बहा दिया जाता है। इससे जहां नदियों का जल प्रदूषित होता है, वहीं, प्रवाह के दौरान पानी भी बेकार हो जाता है।
पानी को बचाने के लिए कार्यरत जल कार्यकर्ता रहटमीना गांव के वीरेंद्र नाथ मिश्र की मानें तो पानी को बचाना है तो नदियों के पेट से गाद व सिल्ट का सफाया किया जाना बेहद जरूरी है। क्योंकि सिल्ट विशाल विस्तार पर गिरने वाला पानी भाप बन कर हवा में उड़ जाता है, जिससे जमीन के नीचे के जल भंडार पर बुरा असर पड़ता है।

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