Araria

Thursday, November 10, 2011

जैसै गोरा कोई लंडन का..


फारबिसगंज (अररिया) : बदलते दौर के साथ ग्रामीण परिवेश के किशोर भी बदले हैं। उनकी सोच, पहनावा, चाल-ढाल सब कुछ बदला है। यह आज के गांवों में बह रही विकास की बयार का द्योतक है। किशोरों, युवाओं के इस बदलते रंग-रूप को अभिभावकों ने भी थोड़ी ना-नुकुर के बाद मौन रजामंदी दे दी है। आखिर यह समय की मांग जो है।
बदला गांवों का गेट अप
नेपाल से सटे सीमावर्ती क्षेत्र फारबिसगंज के ग्रामीण इलाकों में भी ऐसे युवाओं की टोली देखी जा सकती है। इनमें अशिक्षित गरीब, किसान, मजदूर किस्म के परिवार से लेकर संपन्न परिवारों के युवा शामिल हैं। ग्रामीण रतन ठाकुर बताते हैं कि गांवों से शहरों की दूरियां घट रही हैं। अधिकांश बच्चे अब शहरों में ही पढने की तमन्ना रखते हैं। वहीं, निम्न वर्गीय परिवारों के किशोर भी एक बार शहर घूमकर आने के बाद अपना गेट अप बदल लेते हैं। इस कारण गांवों की सड़कों पर दौड़ती 150 सीसी की तेज रफ्तार बाइक, किशोरों के हाथों में मोबाइल फोन, ब्रेसलेट, आंखों पर चश्मे अब आम बात हो गई है। वे बताते हैं कि अब घर-घर में टीवी व केबल कनेक्शन का होना भी इसका प्रमुख कारण है। वहीं, माता-पिता इसे बच्चों के स्वाभाविक विकास का हिस्सा मानते हुए पाबंदियों के साथ मौन स्वीकृति भी दे रहे हैं।

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