Monday, March 26, 2012

लीड: कोर्ट पर भारी शिक्षा विभाग के अधिकारी


अररिया : जनता दरबार का निर्देश हो या कोर्ट का आदेश, कभी-कभी इन सब पर भारी हो जाती है अफसरशाही। यूं तो सूबे में अधिकारियों की मनमानी के चर्चे आम हैं, अररिया का शिक्षा विभाग भी इसमें अछूता नहीं है। यहां तो उच्च न्यायालय के आदेश तक को ठेंगा दिखाने में अधिकारी भय नहीं खाते। कम-से-कम शिक्षक शिवनारायण झा के मामले में विभागीय कार्रवाई तो यही दर्शाता है। पहले तो विभाग ने मनमाने ढंग से शिक्षक शिवनाराण झा को निलंबित कर दिया। जब हाई कोर्ट में उनके निलंबन को गलत करार दिया और उनका योगदान लेने का आदेश दिया तो अब विभाग उन्हें वेतन से ही वंचित रख रहा है। अप्रैल 2011 से ही उक्त शिक्षक की सेवा विभागीय कार्यालय में ली जा रही है किंतु न तो उन्हें वेतन दिया जा रहा है न ही निलंबन भत्ता। वृद्ध शिक्षक वेतन के लिए अधिकारियों के दरवाजे खटखटा रहा है किंतु उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बनकर रह गयी है। इधर उनका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है तथा हताश है। इस संबंध में प्राथमिक शिक्षा डीपीओ विद्यानंद ठाकुर का कहना है कि मामले को जिला शिक्षा पदाधिकारी देख रहे हैं, उन्हीं के स्तर से कार्रवाई की जायेगी।
नरपतगंज प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय जगन्नाथ टोला, बड़हरा में प्राथमिक विद्यालय का घर निर्माण के लिए वे गांव में बांस व खड़ कटवाने गये थे कि इंस्पेक्शन में पहुंच गये तत्कालीन एसडीईओ। बात 1983 की है। उक्त अधिकारी ने उन्हें अनुपस्थित घोषित कर दिया। फिर शिक्षक श्री झा अधिकारी को 'संतुष्ट' नहीं कर पाये और उन्हें निलंबित कर दिया गया। लेकिन शिक्षक श्री झा ने हार नहीं मानी और उच्च न्यायालय पहुंच गये। न्यायालय में लंबी लड़ाई के बाद वर्ष 2005 में न्यायाधीश ने उनके निलंबन को गलत करार देते हुए उन्हें योगदान कराने का निर्देश विभाग को दिया। लेकिन वर्ष 2006 में फिर विभाग ने उनके प्रमाण पत्र पर अड़ंगा लगाकर पुन: निलंबित कर दिया। श्री झा ने जब कोर्ट में अपना प्रमाण पत्र दाखिल किया तो उसे सत्य पाया गया और कोर्ट ने हिदायत के साथ उनका योगदान लेने का आदेश विभागीय अधिकारियों को दिया। से डब्लू जे सी संख्या 569/2000 एवं 4692/06 के आदेश आलोक में जिला के सक्षम शिक्षा अधिकारी ने उन्हें क्षेत्रीय शिक्षा पदाधिकारी अररिया के कार्यालय में 11 अप्रैल 11 को योगदान करा लिया। उसके बाद 30 जून 11 को जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय में योगदान दिया। जुलाई 11 में उन्हें डीपीओ कार्यालय भेजा गया जहां वे आज तक कार्यरत हैं लेकिन न तो उन्हे वेतन दिया जा रहा है और न ही निलंबन भत्ता। ऐसे में शिक्षक का पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है और हताशा में आत्मदाह तक की चेतावनी दे रहा है।

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