Monday, March 26, 2012

लीड: ..का करूं सजनी, सजना गए रे परदेस


अररिया : महाराजा इंद्र की राजधानी इन दिनों मर्दो से खाली है। गांव की महादलित बस्ती के तकरीबन सारे कमाऊ मर्द रोजगार की तलाश में पलायन कर गए हैं। गांव में केवल महिलाएं व छोटे बच्चे शेष रह गए हैं। यह तस्वीर जिले के रानीगंज प्रखंड अंतर्गत इंद्रपुर (इंदरपुर) गांव की है। ज्ञात हो कि इसी गांव के एक किशोर को गुरुवार की रात सहरसा रेल जंक्शन पर पकड़ा गया था।
इंद्रपुर गांव पुरैनियां राजवंश के आखिरी महाराजा इंद्र ने बसाया था। उन्होंने इस गांव को बड़े अरमान से सुंदर स्वरूप प्रदान किया होगा, लेकिन आज उसके निशान भी नहीं मिलते। 1785 में उनकी मौत के बाद इंद्रपुर धीरे-धीरे इतिहास के कूड़ेदान में समा गया। ऐसा प्रतीत होता है कि दुर्भाग्य ने अब तक इस गांव का पीछा नहीं छोड़ा है।
विकास की किसी पहल से अछूते इस गांव में योजनाओं के नाम पर खूब लूट मची। 1996 में कौआबाड़ी माइनर से गांव तक जाने के लिए सांसद योजना के तहत सड़क निर्माण शुरू की गई थी, लेकिन वह आज तक नहीं बनी। गांव तक जाने के लिए आज भी पगडंडियों का ही सहारा है।
गांव के उपेंद्र ऋषि रानीगंज में पान की दुकान चलाते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में किसी को इंदिरा आवास नहीं मिला। सारा पैसा दबंग और बिचौलिए खा गए। गांव में स्कूल भी नहीं है। बच्चों को पढ़ने के लिए एक किमी दूर जाना पड़ता है। लिहाजा अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जाते। पूरे गांव में निरक्षरता का कलंक सिर चढ़ कर बोल रहा है।
इधर, काम की तलाश में यहां के सारे युवक बाहर चले गए हैं। अब बच्चे व किशोर भी जा रहे हैं। दो तीन दिन पहले इसी गांव के एक किशोर को सहरसा जंक्शन पर पकड़ा गया था। वह काम करने के लिए बाहर के प्रांत में जा रहा था। गांव में पहुंचते ही लालमैन देवी से भेंट होती है। उसका पति सिकंदर कमाने के लिए परदेस चला गया है। वह बताती है कि यहां काम नहीं मिलता, बाहर नहीं जाएगा तो पेट कैसे चलेगा? हीरालाल ऋषि, जयनारायण ऋषि व गुलटेन ऋषि भी काम की तलाश में बाहर चले गए हैं। उनकी पत्‍‌नी सोनिया, साबिया व समला यहां घर संभाल रही है। पति के आने का इंतजार है और उनके द्वारा भेजे जाने वाले पैसों का भी। तीनों ने बताया कि यहा काम नहीं मिलता। अभी बाहर में खूब काम मिलता है, पैसा भी अधिक मिलता है। गांव की महिलाएं मछली पकड़ती हैं और सीजनल साग तोड़ कर उसे बच्चों के लिए पकाती हैं।
भूपेंद्र ऋषि की पत्‍‌नी राजकुमारी ने बताया कि गांव में कोय कामे नहीं हय छै। काम नै करतै ते गुजर कोना हैयते। इसी तरह की बात मुन्नी पति चंदन मुखिया, रबिया देवी पति चेतनारायण ऋषि, अमेरिका देवी पति सुशील ऋषि तथा द्रौपदी पति बेचन ऋषि ने कही।
.. क्या करेंगे। घर वाला कमाने के लिए बाहर चला गया है। यहां बैठे- बैठे मन भी नहीं लगता है। यह पूछने पर कि मनरेगा के तहत जाब कार्ड मिला है? तीनों ने एक स्वर से बताया कि यह क्या होता है?
हालांकि सौ परिवारों वाले इंद्रपुर महादलित बस्ती में तकरीबन आधे लोगों के नाम पर जाब कार्ड निर्गत है। लेकिन काम नहीं मिलने की वजह से युवक पलायन को विवश हैं।
इंद्रपुर बस्ती में मनरेगा के तहत काम के चिन्ह भी नहीं दिखते। वहीं, रानीगंज के मनरेगा पीओ स्वतंत्र कुमार ने बताया कि गांव में कई लोगों को जाब कार्ड नहीं मिला है। अब वहां काम शुरू किया जा रहा है।

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