Tuesday, December 7, 2010

ज्ञान तथा साधना की कोई सीमा नहीं

फारबिसगंज(अररिया),जासं: कहते हैं कि ज्ञान तथा साधना की कोई सीमा नहीं होती है। साधना के साथ ज्ञान भी बढ़ता जाता है। महान आंचलिक साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की इस घरती पर कई विद्वान साहित्यकारों, कवियों ने जन्म लिया और अपनी लेखनी का लोहा मनवाया। हालांकि इस साहित्यिक उर्वर भूमि में कई विद्वान आज भी अनजान बने हुए हैं। इन्हीं में एक हैं कवि सह विद्यालय शिक्षक डा. जवाहर देव। फारबिसगंज प्रखंड के भट्टाबाड़ी गांव निवासी डा. देव वर्तमान में कटिहार जिला मुख्यालय स्थित गांधी उच्च विद्यालय में संस्कृत के शिक्षक हैं। उन्होंने अपनी साधना से कई उपलब्धियां दिलाई हैं। काव्य शैली की रचनाओं में रूचि रखने वाले 50 वर्षीय डा. देव की कई रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। 16 कविताओं का काव्य तरंग वर्ष 2007 में प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा भी कई काव्य संग्रहों में छपी रचनाओं को पाठकों ने सराहा है। वर्तमान में इनकी 80 कविताओं की एक काव्य संग्रह बदलते विचार घटते मूल्य प्रकाशित होने वाली है। डा. देव की जितनी अच्छी सुगम संस्कृत की है उतनी हीं बेहतर पकड़ हिंदी पर भी है। डा. देव बताते हैं कि उनकी रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों पड़ अधिक चोट रहता है।
डा. देव की शिक्षा दीक्षा गरीबी और अभावों में गुजरी। इनके पिता स्व. मालुकी लाल देव बेहत संजीदा और कम आय वाले व्यक्ति थे। देव ने राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय सहबाजपुर में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद टयूशन पढ़ाकर मिलने वाले पैसों से पढ़ाई की। धर्म समाज संस्कृत महाविद्यालय मुजफ्फरपुर से 1982 ई. में शास्त्री(बीए) की उपाधि प्राप्त की तथा 1987 ई में पटना विवि से संस्कृत विषय से एम.ए की शिक्षा प्राप्त की। इसी वर्ष गोड्डा जिला स्थित उच्च विद्यालय में सरकारी शिक्षक के रूप में संस्कृत शिक्षक की नौकरी मिल गयी। इसके बाद इन्होंने अपनी लेखनी की अभिरूचि को दिशा दिया। शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर सेवा के लिए विक्रमशिला विवि भागलपुर के द्वारा वर्ष 2008 ई. में जवाहर देव को पीएचईडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके अलावा दलित दलित साहित्य एकेडमी में दिसंबर 2008 में च्योतिबा फूले सम्मान जयपुर राष्ष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंत्र द्वारा शिक्षक श्री सम्मान, काठमांडो में अक्टूबर 2010 में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा इंडो-नेपाल समरसता अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसी दिसंबर माह में दिल्ली में डा. देव को डा. भीम राव अंबेदकर फेलोशिप अवार्ड 2010 से सम्मानित किया जायेगा।
डा. देव बताते हैं कि आज छंद बद्ध कविताओं को लिखने वालों की कमी महसूस हो रही है। कहा कि जिस लक्ष्य को लेकर निराला ने अतुकांत काव्य शैली को प्रारंभ किया था वह आज के कवियों में नहीं देखी जा रही है। उन्होंने आंतरिक वेदना प्रकट करते हुए कहा कि पहले की तरह कविता को पूरा सम्मान नहीं मिल रहा है। अधिकांश लोग कविता को पूरा सम्मान घटा है। पहले की तरह कविताओं में संवेदना और वास्तविक नहीं रहा। डा. देव ने कहा कि संस्कृत विषय को आज बढ़ावा देने की जरूरत है। संस्कृत ज्ञान का सागर है

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