रेणुग्राम (अररिया) : मानवीय संवेदनाओं के कुशल चितेरे अमर कथा शिल्पी रेणु ने खेत-खलियान सहित सामाजिक सरोकारों से जुड़े जिन बिंदुओं को शब्दों में उकेरा था वे आज भी जस की तस बनी है। गांव आज भी तलाशता है कोई नया रेणु तो आए।
दरअसल रेणु जी ने अपनी लेखनी से आंचलिकता के जिन अवसादों को शब्दों में पिरोया था वे आज भी मौजूद दिखते है। भले ही 'टप्पर गाड़ी' की जगह मोटर वाहनों ने ली है मगर आज भी रेणु का गांव एवं आसपास के गांव टप्पर गाड़ी युग में जी रहा है। ईट की टूटी-फूटी कच्ची सड़के, स्वास्थ्य सुविधा व रोजगार से विहीन तथा बिजली की रोशनी पाने को आतुर लोग औराही हिंगना की सच्ची तस्वीर दिखाते नजर आते है। नेपाल क्रांति से लेकर संपूर्ण क्रांति तक का साक्षी रहा यह गांव प्रशासनिक एवं राजनैतिक उपेक्षा का दंश झेल रहा है। रेणु के गांव को साहित्यिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किये जाने की मांग भी लगातार उनके परिजनों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा उठाया गया पर आज तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नही उठाया गया। रेणु जी के पुत्र सह फणीश्वर नाथ रेणु समाज सेवा संस्थान के सचिव दक्षिणेश्वर प्रसाद पप्पू बताते है कि रेणु के साहित्य संसार को देखने भारी संख्या में साहित्य प्रेमी आते है लेकिन साहित्य संयोजन की व्यवस्था नही रहने के कारण काफी कठिनाई होती है। संग्रहालय एवं पुस्तकालय का अभाव लोगों को खटकता है। और तो और राजनीति करने वाले नेताओं ने भी अपने वोट बैंक के लिए रेणु का इस्तेमाल करने से बाज नही आए, तभी तो बार-बार घोषणाओं के बावजूद रेणु के गृह स्टेशन का नामकरण आज तक उनके नाम पर नही हो सका और न ही सिमराहा को प्रखंड का दर्जा मिल सका। न तो प्रशासन, न ही राजनेता, न ही शासन की कुर्सी पर बैठे लोगों में ऐसे शख्सियत के प्रति संवेदना है। रेणु के 'मैला आंचल' की हकीकत यही है कि क्षेत्र के मैलेपन को दूर करने के वायदे सबों ने किये पर ये कभी पूरे नही हुए। इसका मलाल सबों को है। सिर्फ सिमराहा में रेणु के आदमकद प्रतिमा रेणु के होने का एहसास दिलाते है। पूछने पर ग्रामीण साफ शब्दों में बताते है कि किछ नै बदलले। जहिना रहै, तहिना छै..। यानी जैसा था वैसा है। केवल 4 मार्च और ग्यारह अप्रैल के दिन कुछ लोग आते है, रेणु की याद में कसीदे पढ़कर लौट जाते हैं। अररिया जिले के फारबिसगंज प्रखंड अंतर्गत औराही हिंगना के फणीश्वर नाथ रेणु को लेकर भले ही बड़ी-बड़ी बाते होती हो या फिर उनके रचनाओं पर फिल्में बनती हो या नाटकों का मंचन होता हो पर वे अपनी ही माटी पर ही विस्मृत है। यह कटु सत्य है। अपनी रचनाओं से समाजिक कुरीतियों एवं विषमताओं पर प्रहार करने वाले इस रचनाकार की स्मृति में राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिमराहा कलोनी के निकट बने रेणु गेट उपेक्षा का शिकार है। रेणु गेट आधा अधूरा पड़ा है इस ओर किसी की नजर नही है। ऐसे कथा शिल्पी के प्रति उदासीनता वर्तमान के कलमकारों में प्रोत्साहन के बजाय हताशा में डाल देती है।
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