भरगामा (अररिया) : लगातार बदलते परवेश या फिर भागती जिंदगी ने भले ही एक हद तक परिवारों को साधन संपन्न कराया है। बावजूद इसके सच्चाई यह है कि इस बदले माहौल में भी प्रखंड की एक बड़ी आबादी शौचालय व्यवस्था के अभाव में खुले में शौच करने पर विवश है। आलम यह है कि ग्रामीण सड़के सार्वजनिक स्थल का अनुपयोगी भाग आदि शौच का उपयुक्त स्थल बन गया है।
चर्चा ग्रामीण इलाकों की करें तो स्थिति और भी दयनीय बनी हुई है। सड़क किनारे शौच के बाद उठे दुर्गध के कारण सड़कें पर परिचालन एक अलग हीं समस्या बन गई है। ऐसा नहीं है कि इस गंदगी फैलाने के पीछे शौचालय बना पाने में असक्षम क्षेत्र के आर्थिक रूप से विपन्न या अशिक्षित वर्ग ही जिम्मेदार हैं, बराबर के सहयोग सरकारी तंत्र भी माना जा रहा है। सरकारी स्तर पर तथा सांसद निधि आदि से भी पूर्व में क्षेत्र विशेष चिन्हित कर शौचालय निर्माण की व्यवस्था करवाई गई। किंतु अंकुश नही रहने के कारण या अन्य कारणों से व्यवस्था के क्रियान्वयन का जिम्मा क्षेत्र के ऐसे हाथों में चली गई जो प्रतिनिधि के खास तथा प्रशासनिक तंत्र के करीब थे। लिहाजा बहुउद्देशीय शौचालय निर्माण की योजना भी अधिकांश जगहों पर फाइलों में ही निर्मित होकर रह गई। इधर मूल रूप से मजदूरी पर निर्भर बीपीएल परिवार वालों का कहना है कि दिन भर मजदूरी के बाद आसमान पर पहुंचे महंगाई में दो जून की रोटी जुटा पाना जब संभव नही तो..।
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