अररिया : महंगाई डायन खाये जात है..। महंगाई ने आम जन की सुख, शांति व समृद्धि छीन ली है। केंद्र की मनमोहन सरकार के तीन साल पूरा होने को हैं, लेकिन विगत तीन साल में महंगाई की मार से जीवन का कोई पहलू अछूता नहीं रहा है। महंगाई से त्रस्त आम जन का सामान्य कथन है 'जब जब कांग्रेस आयी है, महंगाई साथ में लाई है'। समाज का निम्न व मध्यम वर्ग महंगाई की मार से कराह रहा है। एक तरफ नौकरी पेशा लोगों की पगार व श्रमिकों की मजदूरी बढ़ती है उधर, महंगाई उसे खा जाती है। लोगों का जीना मुश्किल हो गया है।
बीते तीन वर्षो में खाद्य पदार्थो का मूल्य दोगुने से भी अधिक बढ़ा है। उपभोक्ताओं का कहना है कि मसूर दाल पहले तीस रूपये में खरीदते थे अब उसकी कीमत 70 रूपये तक पहुंच गयी है। हरी सब्जियों के दाम चार से पांच गुने तक बढ़ गये हैं। मई के महीने में भिंडी व परवल जैसी सब्जियां चार पांच रुपये किलो बिकी थी। इन दिनों उसकी कीमत चालीस रुपये प्रति किलो से कभी कम नहीं होती। यह बात अलग है कि सरकार की नीतियों व तंत्र के कुचक्र से हरी सब्जियों के दाम में बढ़ोतरी का फायदा उन्हें नहीं मिलता, जो हाड़ तोड़ परिश्रम कर उसे उपजाते हैं। पशु पालक किसानों का दूध पंद्रह से अठारह रुपये में प्रति किलो बिकता है, वहीं दूध डेयरी वाले पैंतीस छत्तीस रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं।
आम लोग बढ़ती महंगाई के बोझ से कराह रहे हैं। खासकर पेट्रोल और डीजल के अनियंत्रित मूल्य से महंगाई चरम सीमा पर पहुंच गयी है। शहरी इलाकों में मकान किराया, बिजली बिल एवं अन्य खाद्य सामग्रियों के प्रबंधन में निम्न एवं मध्यम वर्गीय परिवारों का हाल खस्ता होता जा रहा है। इन परिवारों के सामने बच्चों की पढ़ाई, बेटी की शादी कराना काफी मुश्किल प्रतीत होता है।
वार्ड नंबर दस की किरण देवी का कहना है कि आमदनी के बजाय महंगाई आसमान छू रहा है। ऐसे में खाद्य पदार्थो की खरीदारी मुश्किल हो रही है।
वहीं मध्यम वर्गीय परिवार की स्नेहलता ने बताया कि बढ़ती महंगाई से अब तो शहर में रहना भी मुश्किल हो गया। उन्होंने बताया कि महंगाई के दौर में दाल, रोटी के जुगाड़ में भी काफी पैसे खर्च हो रहे हैं। ऊपर से मकान किराया, बच्चों की पढ़ाई कैसे करें समझ में नहीं आता।
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