Tuesday, October 25, 2011

मैला आंचल के आसमां में चमकने लगे आकाशदीप


अररिया : अमर कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की धरती पर आकाशदीप एक बार फिर रोशन हो गये हैं। सौभाग्य, समृद्धि व जन उल्लास के प्रतीक रंग बिरंगे इन आकाशदीपों के कारण गांवों में त्यौहार का माहौल उत्साह से लबरेज है। इनसे सैकड़ों परिवारों की रोजी रोटी का साधन भी जुड़ गया है।
ज्ञात हो कि अररिया जिले के गांवों में कार्तिक के पावन महीने में दीपदान व आकाश दीप जलाने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। रेणु ने अपनी रचनाओं में इन्हें आंचलिकता के बिंब के रूप में इस्तेमाल किया है।
जानकारों की मानें तो यहां के लोग आकाशदीप इस लिए रोशन करते हैं कि उनका परिवार देवताओं के आशीर्वाद से सदा फलता फूलता रहे। परिजनों के बीच सुख, समृद्धि व एकता बनी रहे तथा गांव हर विपत्ति की स्थिति में एकजुट रहे।
इन दिनों जिले से होकर गुजरने वाली शानदार फोरलेन सड़क के दोनों ओर अररिया व फारबिसगंज के बीच शाम होते ही बेहद खूबसूरत समां नजर आता है, यह खूबसूरती आकाशदीपों की है। माणिकपुर के ग्रामीण राजेंद्र मंडल ने बताया कि वे बचपन से ही इन्हें देखते आ रहे हैं। ये गांव की एकजुटता की निशानी हैं। गांव का हर किसान कार्तिक के महीने में अपने घर के आगे आकाशदीप जरूर जलाता है।
अररिया में आकाशदीप बेच रहे पंकज मालाकार मिले। अष्टकोणीय व चार कोण वाले आकाशदीप। किसी का माडल वायुयान जैसा तो कोई सितारे के आकार का। पंकज को देख कर रेणु की ठेस कहानी के सिरचन की याद आयी। पंकज ने बताया कि एक सीजन में आकाशदीप की बिक्री से लगभग पांच छह हजार की आमदनी हो जाती है। मालाकार परिवारों के लिए यह एक बड़ा सहारा है। उन्होंने बताया कि इस काम में उन्हें गांव के किसी किसान से बांस व बाजार से रंग व रंगीन कागज की खरीद करनी पड़ती है। बांकी सब कलाकार की कल्पना व उंगलियों का कमाल है।

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