अररिया : कभी दीवाली में मिट्टी का दीया व दिवरी बेचकर कुम्हार भाई साल भर तक अपने परिवार का भरण पोषण कर लेते थे लेकिन बिजली की चकाचौंध व इलेक्ट्रानिक युग ने उनके इस पेशा पर कैंची चला दी है। जिससे अब कुम्हारों की स्थिति दीया तले अंधेरा वाली हो गयी है। यह समस्या सिर्फ यहां की नहीं बल्कि बल्कि पूरे कुम्हार समुदाय की है। बसे कुम्हार मुनीलाल पंडित की नहीं है, बल्कि जिले के कोने-कोने में रहने वाले कुम्हार आज यही बात सुनाते दिखाई देंगे। दरअसल आज फैशन के इस दौर में बिजली की चकाचौंध ने दीया तले अंधेरा कर दिया है।
दीपावली त्यौहार पर लोग पहले मिट्टी के दीये से घर को सजाते थे और अपने अपने आंगन व दरवाजे पर आकर्षक रंगोली बनाते थे। पर अब बिजली से जलने वाला दीया बाजार में बिकने लगा है। यही नही अपने-अपने घर को आकर्षक ढंग से सजाने के लिए लेग इलेक्ट्रानिक फूल जिसे आम भाषा में 'टुमनी बाल' कहा जाता है, जलाते हैं। एन एच 57 किनारे गैयारी के कुम्हार मुनिलाल पंडित, सुशील पंडित, रामचंद्र पंडित, बाबूलाल पंडित, बनारसी पंडित, सुरेन पंडित, तेतर पंडित, आनंदी पंडित, रामाधार पंडित आदि बताते हैं कि वे लोग फिर भी लगन के साथ मिट्टी का दीया अपने चाक पर बना रहे हैं पर दिल के भीतर नहीं बिकने का डर भी सता रहा है। कुम्हार समुदाय के लोगों का कहना है कि इलेक्ट्रानिक युग ने हमारे चाक की रफ्तार को धीमा कर दिया है। इन लोगों का यह भी कहना है कि महंगाई इस दौर में 30 से 40 रु. सैकड़ा दिया बेचने पर बचत नहीं हो पाता है। जबकि दीया तैयार करने में मिट्टी, पुआल, गोयठा खरीदना पड़ता है। गैय्यारी के एक कुम्हार तो यह भी कहते हैं कि नहीं बनायेंगे तो खायेंगे क्या। कुल मिलाकर बिजली व कृत्रिम सजावटी सामान के सामने मिट्टी का दीया, ढिबरी अनुपात में काफी कम बिक रहा है।
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