Saturday, December 3, 2011

लोक आस्था का केन्द्र है मेला परिसर का काली मंदिर



फारबिसगंज (अररिया) : आस्था का केन्द्र है, फारबिसगंज नगर के मेला परिसर स्थित काली मंदिर। ऐसा कहा जाता है कि कोशी कमीश्नरी के सबसे पुराना मंदिरों में इसका भी स्थान है। आस्था से जुड़े श्रद्धालुओं का यहां आने का लगा रहता है तांता। पिछले कई दशक से काली पूजा के अवसर पर वहां लगता है भव्य एवं आकर्षक मेला। करीब एक माह तक चलने वाले मेले में वर्षो से मवेशियों के खरीद-बिक्री के लिए लगता है बाजार। जहां बिहार के अलावे अन्य कई राज्यों के दुकानदार, मवेशी विक्रेता पहुंचकर मेले की शान बढ़ाते रहे है। वहीं पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के लोगों के आस्था एवं आकर्षण का केन्द्र रहा है उक्त मेला। आस्था का केन्द्र उक्त काली मंदिर में मनत मांगने वाले लोगों की मानोकामना पूर्ण होती है। मंनत पूरी होने पर श्रद्धालु विभिन्न क्षेत्रों से आकर अपना चढ़ावा भी चढ़ाते है। मंदिर के संदर्भ में वर्तमान पुजारी काशीनाथ मिश्र बताते हैं कि मूल मंदिर की स्थापना 100 वर्ष पर्व की गई थी। जिसके पहले पुजारी उनके पूर्वज स्व. पंडित दाता राम मिश्र जी थे। उनके बाद आये अन्य पूजारियों के प्रयास एवं श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर का जीणोहार किया गया। वहीं 2000 ई. के आस-पास यहां प्रतिमा की स्थापना स्थाई रूप से कर दी गई। बतायाकि इससे पूर्व दशहरा के मौके पर मा दुर्गा तथा दीपावली के मौके पर मां काली की प्रतिमा स्थापित होती रही है। कहा कि करीब डेढ़ दशक पूर्व तक दशहरा में लगने वाला मेला काली पूजा तक चलता था जिसकी करीब एक माह रही थी। किंतु अब मेला कब लगेगा कब टूटेगा यह निश्चित नही कहा जा सकता। बताया कि कई वर्ष पूर्व तक मंदिर में काली पूजा के मौके पर अंचल कार्यालय से सामग्री आदि की खरीददारी के लिए राशि भी मिलती थी, अब यह बंद है। मंदिर में प्रतिदिन भगवान को भोग तो लगाया ही जाता है, किंतु कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष मंगलवार एवं शनिवार को महाभोग लगता है। कृष्ण पक्ष अष्टमी, अमावस्या पूजा, पूर्णिमा पूजा भी पूरे धूमधाम से प्रत्येक माह किया जाता है। कहते हैं कि उक्त मंदिर में सच्चे हृदय से मांगी गयी मुराद अवश्य ही पूरा होता है, यही कारण है कि यह मंदिर आस्था का केन्द्र बना हुआ है। दाता भी अपने पूरे तन, मन, धन के साथ अपना सहयोग मंदिर प्रबंधन को देते रहते हैं।

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