Saturday, December 3, 2011

ध्वनि प्रदूषण: पर्यावरण के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी घातक


फारबिसगंज (अररिया) : विकास के साथ ही ध्वनि प्रदूषण का दुष्प्रभाव भी लोगों के जीवन में लगातार बढ़ता जा रहा है। जिस कारण लोग कई मानसिक अवसादों से ग्रसित हो रहे हैं। दैनिक जीवन में बढ़े विलासिता पूर्ण मशीनों से उठने वाले शोर निर्धारित मानक से कई गुणा अधिक होते हैं जिस कारण वे हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं।
सड़कों पर सरपट दौड़ते वाहनों के कर्कश हार्न की आवाज हो या डीजे, लाउडीस्पीकर, जेनरेटर व फैक्ट्री आदि से निकलने वाले शोर सभी लोगों के जीवन में जहर घोल रहे हैं। वैवाहिक लगन व अन्य मौकों पर फोड़े जाने वाले पटाखों की आवाज भी स्वास्थ्य के लिए घातक है। ये शोर सामान्य स्वास्थ्य के लिए निर्धारित मानक 64 डेसिबल ध्वनि से कई गुणा अधिक होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है साथ ही यह गैर कानूनी भी है। पर यहां कानून की परवाह करता ही कौन है। तभी तो चाहे अस्पताल हो या शैक्षणिक संस्थान या फिर कोई रिहायशी इलाका, संवैधानिक निषेध की परवाह किए बगैर वाहन चालक अपने एअर हार्न तक बजाने में कोताही नहीं करते और ना ही लाउडीस्पीकर व डीजे बैंड के सुर धीमा होता है।
क्या कहते हैं चिकित्सक?
क्षेत्र के प्रतिष्ठित चिकित्सक अजय कुमार इस संदर्भ में बताते हैं अन्य प्रदूषण की तरह ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए उतना ही हानिकारक है। उन्होंने बताया कि शारीरिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति भी ध्वनि प्रदूषण के कारण अवसाद ग्रस्त एवं अन्य पीड़ा से ग्रसित हो सकते हैं। लोगों में बढ़ते चिड़चिड़ापन का प्रमुख कारण ध्वनि प्रदूषण भी है। दिल और कान के मरीजों के लिए तो ध्वनि प्रदूषण काफी हानिकारक है। उन्होंने बताया कि निर्धारित मानक से अधिक शोर हार्ट मरीज के लिए घातक हो सकता है। कभी कभी तो ध्वनि प्रदूषण के कारण हृदयाघात तक हो जाता है। जबकि गर्भवती महिला को भी उन्होंने कानफाड़ू शोर से बचने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि खासकर बच्चे और बुजुर्गो पर ध्वनि प्रदूषण का काफी बुरा असर पड़ता है। उन्होंने ध्वनि प्रदूषण को ले लोगों में जागरुकता लाए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

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