फारबिसगंज (अररिया) : नई व्यवस्था के तहत इंदिरा आवास बनाने में अब पुरुषों की मनमानी नहीं चल रही है। महिला लाभुकों को सीधे तौर पर योजना से जोड़ देने से इसका फायदा अब देखने को मिल रहा है। अब पैसे महिलाओं के खाते में जाने से वे पुरूषों को इसका दुरूपयोग नहीं करने दे रही है। इसलिये मोटरसाइकिल खरीदने की जगह 'मुनिया माई' अपना घर बनाने के लिये ही इंदिरा आवास की राशि अपने बैंक खाते से निकाल रही है। एक तो प्रशासनिक दबाव, उस पर से 'अपना घर' होने का एहसास, इंदिरा आवास इस बार पूरा होने की उम्मीद बढ़ गई है।
इससे पूर्व इंदिरा आवास की राशि आवंटित तो की जाती रही है। लेकिन यह राशि लाभुकों के हाथ से निकलकर दलालों, अफसरों के पास पहुंच जाते थे। जिस कारण या तो इंदिरा आवास बनते ही नहीं थे या फिर आधे अधूरे रह जाते। वर्ष 2011-12 से नई व्यवस्था के तहत बीपीएल परिवार की महिला के नाम से ही बतौर लाभुक इंदिरा आवास आवंटित की जा रही है। अवधारणा यह है कि महिला के नाम से राशि देने पर यह पैसा इधर-उधर खर्च नही होगा। 'अपना घर' का एहसास जगेगा और मकान जरूर बनेगा। ऐसा हो भी रहा है। पंचायतों में इंदिरा आवास की दूसरी किस्त की 15000 रुपया से मकान की दिवाल (लिंटल तक) पूरा कर लेना होता है। जिसके बाद जांचोपरांत दूसरे किस्त की राशि दी जायेगी।
फारबिसगंज बीडीओ किशोर कुमार दास बताते हैं कि दूसरी किस्त के लिये अभी तक करीब 50 आवेदन मिले है। हालांकि यह संख्या नगण्य है लेकिन सूचना मिल रही है। ईट भट्टा खुलने का भी इंतजार हो रहा है। बीडीओ ने कहा कि महिलाओं को सीधे तौर पर योजना से जोड़ने से इसके अच्छे परिणाम मिल रहे है। महिलाएं अब इंदिरा आवास बनाने की राशि दूसरे कामों में खर्च करने से अपने घरों में मना भी कर रही है। इसके लिये वह विरोध के स्वर भी बुलंद करने लगी है। यही वजह है कि नई व्यवस्था में इंदिरा आवास बन जाने की उम्मीद बढ़ गई। फरवरी माह तक दूसरी किस्त प्रखंड को मिलने की उम्मीद है। पहली किस्त से बने मकान की जांच के बाद इस दूसरी किस्त की राशि बांटी जायेगी। घर नही बना तो 'मुनिया माई' पर मुकदमा होना भी संभव है।
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