अररिया : देश की सबसे बड़ी अदालत के द्वारा शिक्षा का अधिकार एक्ट को संवैधानिक रूप से दर्जा देते हुए 25 फीसदी आरक्षण पर मुहर लगाने के बाद खलबली मच गई है। अब कोई भी सरकारी, गैर सरकारी, अर्ध सरकारी सहायता प्राप्त केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, छात्रों के नामांकन के वक्त डोनेशन या कैपिटेशन फीस नही ले सकता है। यही नहीं स्कूलों में 25 प्रतिशत गरीब परिवार के बच्चों का नामांकन हर हाल में नि:शुल्क करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद जिले के स्कूल संचालकों के माथे पर पसीना दिखने लगा है। क्योंकि जिले के एक दर्जन से अधिक वैसे प्राइवेट स्कूल हैं जो प्रत्येक वर्ष नमांकन शुल्क के रूप में 5 से 10 हजार रुपया कैपिटेशन फीस या डोनेसन लेते हैं। अधिकांश कच्ची, खपरानुमा भवन में संचालित निजी विद्यालयों के पास न तो अच्छा क्लास रूम है, और न ही टायलेट। खेल का मैदान व लाइब्रेरी तो दूर की बात। कई दर्जन विद्यालयों में एक चापाकल है, जहां लंच के वक्त सैकड़ों छात्र पानी के लिए मशक्कत करते दिखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में यह भी कहा है कि अब स्कूलों में ट्रेंड शिक्षक को ही रखना होगा। 40 बच्चों पर एक शिक्षक रखना अनिवार्य कर दिया गया है। परंतु जिले की विडंबना यह है कि 99 फीसदी प्राइवेट स्कूलों में इंटर, बीए पास युवक-युवती ही शिक्षण कार्य कर रहे हैं। 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे को मुफ्त शिक्षा देने का भी सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है। इधर जिला शिक्षा पदाधिकारी राजीव रंजन प्रसाद ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अनुपालन नही करने वालों की खैर नही होगी।
बाक्स के लिए
निजी ट्यूशन पर लगेगी रोक
अररिया, संसू: शिक्षा का अधिकार कानून को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद शिक्षा माफियों के होश उड़ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट पर कानूनी मुहर लगा दी है। अब कोई भी सरकारी या गैरसरकारी स्कूल, कालेज के शिक्षक निजी ट्यूशन नहीं कर पायेंगे। अब सवाल यह उठता है कि अररिया में कोर्ट के निर्णय एक्ट में अंकित प्रावधानों का पालन हो पायेगा। क्योंकि अररिया में तो निजी ट्यूशन पढ़ाने वालों की भरमार है। सिर्फ काली बाजार, आश्रम रोड, शिवपुरी, खरैया बस्ती, इस्लामनगर, आजादनगर इलाकों में ही दर्जनों शिक्षक घर पर खुलेआम निजी ट्यूशन कर लाखों रुपये मासिक कमा रहे हैं।
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