अररिया : इसी धरती के अमर कथाशिल्पी रेणु ने एक बहुचर्चित कहानी लिखी, जिसका शीर्षक है न जाने केहि वेष में ..। प्लाट भले ही अलग हो, पर पलासी में आम जन से अवैध वसूली करते तीन युवकों की गिरफ्तारी ने इस शीर्षक को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। भोले लोगों को लूटने का बहाना चाहिये। लूटने वाले बस हर वक्त तैयार हैं। चाहे यह बंध्याकरण कैंप में एक्सपायरी दवाओं के माध्यम से हो, इंदिरा आवास की दलाली से हो या फिर मकान पर नंबर प्लेट लगाने से ही क्यों न हो हो।
पलासी की घटना ने जहां कई सवाल खड़े किये हैं, वहीं यह बात भी सामने आयी है कि अररिया की सरजमीं पर लूटने वालों की कोई कमी नहीं। एसपी शिवदीप लांडे ने पलासी में बताया कि यह घटना आश्चर्यजनक है, क्योंकि भारत सरकार ने ऐसी कोई योजना नहीं चला रखी है। उन्होंने कहा कि इस कथित गिरोह ने ग्रामीणों को लगभग एक करोड़ की चपत लगायी है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि सिविल सर्जन व सीडीपीओ ने अवैध वसूली कर रहे लोगों को चिट्ठी किस प्रकार जारी कर दी? उन्होंने यह नहीं सोचा कि इस पत्र का दुरुपयोग भी हो सकता है?
याद होगा कि फोरलेन सड़क बनने से पहले कुसियारगांव जंगल के निकट तथा रानीगंज मार्ग सहित जिले के कई अन्य स्थानों पर कुछ लोग बाइक वालों से हेडलाइट पर कालिख पोतने व बुकलेट देने के नाम पर किस कदर उगाही करते थे। कभी चालक संघ के नाम पर तो कभी किसी धार्मिक आयोजन के नाम पर अवैध उगाही भी यहां के लिए कोई नई बात नहीं है।
किसी ब्लाक परिसर में चले जाईये, गरीबों की नोच खसोट करने वाले लोग तरह तरह के वेष में मिल जायेंगे। इस जमात में ढेर सारे लोग शामिल हैं। भ्रष्ट अधिकारी, करप्ट नेता व बिचौलियों की रसूखदार तिकड़ी ने अररिया के भोले भाले लोगों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
पलासी की घटना में तो कानून अपना काम करेगा, लेकिन इससे एक बात जरूर सामने आती है कि अधिकारियों को आम जन के हित की उतनी परवाह नहीं। अन्यथा नंबर प्लेट के नाम पर वसूली करने वालों को सिविल सर्जन व सीडीपीओ की चिट्ठी नहीं मिलती।
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