Tuesday, December 20, 2011

बांस को लेकर किसानों में आस


भरगामा (अररिया) : बांस की खेती भरगामा व आसपास के इलाकों के किसानों समक्ष संवृद्धि का जरिया बनता जा रहा है। बड़ी संख्या में किसान इस खेती के प्रति आशक्त हुए हैं। शून्य लागत पर आधारित इस खेती को लेकर क्षेत्र के किसानों में काफी उत्साह भी बना है।
बांस की कई प्रजाती के लिए उर्वरक साबित हो रही यहां की मिट्टी:-
जानकारों की माने तो चाभ, बनबांस, मोकला, हरौथ आदि बांस की कई प्रजातियां है जो इस मिट्टी के लिए उपयुक्त है। खासबात यह है कि शून्य की लागत की यह खेती अर्थोपार्जन के साथ कई मायने में लाभकारी साबित हो रही है। बांस की छोटी-छोटी पतली शाखाएं फूस के घर निर्माण, घेराबंदी आदि के कामों में आ जाती है, जबकि जड़ जलावन के काम में। इससे किसानों के कई समस्या का हल भी एक साथ हो जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक केवल भरगामा में फीलवक्त ढ़ाई हजार एकड़ से अधिक के क्षेत्रों में बांस की खेती हो रही है जो कुछ वर्ष पूर्व तक ढ़ाई सौ से चार सौ एकड़ के बीच थी।
व्यवसाय के रूप में उभरने को बेताब यह खेती:-
छोटे से प्रखंड की सीमा को लांघ कर यह व्यवसाय देखते अब महानगर-दिल्ली के साथ राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं अन्य कई बाजारों तक पहुंच गया है। स्थानीय स्तर पर भी कई व्यवसाई उभरे हैं जो रोजगार के साथ अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। व्यवसाई बताते हैं कि हाल के दिनों में हुए सड़क निर्माण तथा सुदृढ़ीकरण की व्यवस्था ने इस खेती या व्यवसाय को बेहतर गति दिया। जिस कारण व्यापारी खेतों के बीज सहजता से उपलब्ध हो जाते हैं।
प्रशासनिक प्रयासों से स्थापित हो सकती है यह खेती:-
जानकारों की मानें तो प्रशासनिक प्रयास से बांस की खेती को स्थापित कर गांवों में भी संवृद्धि लाई जा सकती है। इसके लिए जरूरी है किसानों के बीच इसके खेती से जुड़े तकनीक की सही जानकारी उपलब्ध कराना, आर्थिक सहायता व प्रोत्साहन आदि। बहरहाल बांस की खेती कर रहे किसानों में अरविंद यादव, जयन्त कुमार, राणा गुप्ता बताते हैं कि गांवों में भी एक बांस की कीमत 40 से 50 रुपया तक उपलब्ध हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक बताया कि प्रति वर्ष, प्रति एकड़ इस खेती से लाखों में कमाई की जा सकती है।

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