Sunday, January 29, 2012

दीक्षा संपन्न, गरिमा बोथरा बन गयी साध्वी गुंजन श्री जी


फारबिसगंज (अररिया) : पिछले कई दिनों से फारबिसगंज में चल रहे धार्मिक कार्यक्रमों के बाद शनिवार को जैन समुदाय द्वारा स्थानीय नमक गोला परिसर में आयोजित गरिमा बोथरा का दीक्षा कार्यक्रम संपन्न हो गया। दीक्षा ग्रहण करने के साथ ही बहन मुमुक्षु सुश्री गरिमा बोथरा साधुमार्गी साध्वी गुंजन श्री जी बन गई। आचार्य श्री रमेश जी महाराज की सुशिष्या शासन दीपिका साध्वी, श्री आदर्श प्रभा जी मा.सा. के द्वारा हजारों महिला, पुरुषों के समक्ष विधि पूर्वक दीक्षा दिलाई गई। बेहद भावुक क्षण में संपन्न दीक्षा समारोह में गरिमा उर्फ साध्वी गुंजन के परिजनों सहित वहां उपस्थित लोगां की आंखों से अश्रुधारा बह रहे थे। इस दौरान दीक्षा से पहले गरिमा की माता इचरज देवी, पिता प्रदीप बोथरा, दादा, दादी, भाइयों से स्थानीय जैन समुदाय से गरिमा की दीक्षा के लिये आदर्श प्रभा जी द्वारा स्वीकृति ली गई। गरिमा बोथरा से अंतिम बार फिर स्वीकृति ली गई। जिस पर गरिमा ने कहा कि दीक्षा का उसके वर्षा का सपना आज पूरा हो रहा है। आदर्श प्रभाजी द्वारा गरिमा का विधिवत पांच केशों को लूंचन किया गया। सफेद वस्त्र में सभा के बीच में चौकी पर बैठी गरिमा को जैन धर्म के अनुसार मंत्रोच्चार के साथ दीक्षा दिलायी गई। जिसके बाद वह साध्वी मंडली के साथ जाकर बैठ गई। इसके साथ ही वह साध्वी बन गई। गरिमा का नया नामकरण साध्वी गुंजन श्री के नाम पर किया गया। आदर्श प्रभा सहित अन्य जैन साध्वियों के साथ साध्वी गुंजन श्री जी पैदल भ्रमण करते हुए स्थानीय समता भवन पहुंची। इस दौरान उन्हें देखने के लिए हजारों की भीड़ सड़क किनारे तथा आगे-पीछे चल रही थी। बताया गया कि साध्वी मंडली के साथ गुंजन श्रीजी दो-तीन दिनों में नेपाल के विराटनगर प्रस्थान कर जायेगी। जहां उनका आगामी शनिवार को बड़ा दीक्षा कार्यक्रम होगा। इसके साथ ही गरिमा उर्फ गुंजन अपने परिजनों को छोड़कर वैरागन हो गई।
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सहेलियों को गरिमा से विछुड़ने का दुख
फारबिसगंज (अररिया), हप्र: दीक्षा ग्रहण कर साध्वी बन फारबिसगंज तथा यहां अपने परिजन मित्रों को अलविदा कह गरिमा बोथरा के साधुमार्ग अपनाने से उसकी खास सहेलियां जहां गर्व महसूस कर रही है, वहीं उन्हें गरिमा से विछुड़ने का दुख भी है। स्थानीय शिशु भारती विद्यालय में नर्सरी से कक्षा दसवीं तक गरिमा के साथ पढ़ी सोनाली, प्रियंका जैन, निकिता, कविता आदि ने बताया कि इस उम्र में ही संसार में सभी मोह-माया एवं भौतिक सुखों को परित्याग कर उनकी मित्र गरिमा ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति एवं आध्यात्मिक मनोभाव का जो परिचय दिया है उससे उसके मित्र-परिजन व संपूर्ण फारबिसगंज शहर गौरवान्वित है। लेकिन उन्हें इस बात की दुख है कि अब वे हमेशा की भांति अपनी प्रिय सहेली गरिमा से नही मिल सकेगी। उन्होंने बताया कि साधु मार्ग अपनाने को लेकर गरिमा के मन में किसी प्रकार का संशय उन्हें नजर नही आया। पूछने पर मित्रों को वह सिर्फ इतना बताती है कि मैने काफी सोच समझकर समस्त जीव के हित के लिए यह मार्ग अपना रही हूं।
वहीं गरिमा की कई शिक्षिकाएं भी इस प्रकरण के उठते ही भाव विभोर हो गई। नम आंखों से बताया कि इस नन्हीं सी उम्र में ही उसने तपस्वी का कठिन मार्ग अपना लिया है। तपमार्ग में गरिमा सफलता की कामना करते हुए उन्होंने कहा कि बचपन से ही वह काली अनुशासित एवं धर्मप्राण थी।

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