अररिया : देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस..। केन्द्र में सबसे अधिक दिनों तक सरकार चलाने वाली पार्टी कांग्रेस..। देशहित में सोचकर प्रधानमंत्री पद ठुकराने वाली सोनिया गांधी की पार्टी कांग्रेस..। लेकिन जिले में पार्टी को हो क्या गया है? आखिर जिला कांग्रेस पार्टी को किसकी नजर लग गई? आखिर कांग्रेस की नैया को यहां पार कौन लगाएगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिससे पिछले विधानसभा चुनाव से ही लोग रूबरू हो रहे हैं। जिला कांग्रेस कमेटी वर्तमान में दो फाड़ हो गयी नजर आती है।
जिले की कांग्रेस पार्टी पिछले एक दशक से अंदरूनी कलह से जूझ रही है। यह पहला मौका नहीं है जब संगठनात्मक चुनाव को ले पार्टी कार्यकर्ता स्पष्ट रूप से दो खेमे में बंटे हों। 24 जनवरी से पहले भी पार्टी में मनमुटाव खुलकर सामने आ चुके हैं। 24 जनवरी को पार्टी द्वारा प्राधिकृत जिला निर्वाचन पदाधिकारी सत्येन्द्र कुमार अपने पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार जिलाध्यक्ष पद का चुनाव कराने जिला कार्यालय गांधी आश्रम पहुंच गये। जबकि चुनाव पर्यवेक्षक के रूप में प्राधिकृत आईएस सनादी फारबिसगंज जेपी भवन में चुनाव कराने जा धमके। पार्टी के वर्तमान जिलाध्यक्ष फारबिसगंज में नजर आए। परिणाम यह हुआ कि जिलाध्यक्ष चुनाव के लिए अररिया व फारबिसगंज दो जगहों पर नामांकन हुआ, पर चुनाव नहीं। इससे पहले भी गत साल 22 नवंबर को पहले जिला निर्वाचन पदाधिकारी अरविंद लाल रजक गांधी आश्रम में चुनाव कराने पहुंचे थे। जहां नामांकन के दौरान खूब भगदड़ मची थी और कांग्रेसी आपस में ही भीड़ गये थे। मामला इतना बढ़ गया था कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। पहुंचकर मामला को शांत कराया। उस समय कहा गया कि युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया है। लेकिन 24 जनवरी के बंटवारे को देखकर यह सवाल खूद सामने आ रहा है कि आखिर जिला कांग्रेस पार्टी को दो खेमा करने वाला कौन है?
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