Thursday, January 26, 2012

इतिहास के पन्नों में खो गए पंडित जी!


जोकीहाट (अररिया) : प्रख्यात लेखक, कवि, योग्य शिक्षक तथा प्रखर स्वतंत्रता सेनानी पं.पुण्यानंद झा सच्चे अर्थो में एक राजपुरुष थे, जिसने हमेशा समाज व देश की अगली पीढ़ी के विकास की चिंता की तथा राजनीति से स्वच्छ व बेदाग निकल गए।
पं. पुण्यानंद झा स्वतंत्रता आन्दोलन के सच्चे सिपाही थे। उनका जन्म 1891 में अररिया जिले के जोकीहाट प्रखंड अंतर्गत जहानपुर गांव में हुआ था। वे मैथिली व हिंदी के प्रख्यात लेखक थे तथा यह माना जाता है कि उनका उपन्यास मिथिला दर्पण मैथिली भाषा का प्रथम उपन्यास है। उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के दौरान 1921 में अररिया हाई स्कूल में शिक्षक की सरकारी नौकरी को छोड़ दिया।
रसल हाई स्कूल बहादुरगंज के सेवानिवृत प्रधानाध्यापक जहानपुर निवासी महि नारायण झा ने बताया कि पुण्यानंद बाबू कांग्रेस के बड़े नेता थे तथा जवाहर लाल नेहरू व देश रत्‍‌न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के काफी निकट थे। उन्होंने बंगाल का अकाल, मिथिला दर्पण, एसेंबली में क्या-क्या देखा जैसी कई कृतियों के माध्यम से तत्कालीन समाज तक की आलोचना की थी।
उन्होंने बताया कि पंडित जी को शेक्सपियर की जूलियस सीजर, मैकबेथ जैसी रचनाएं जुबानी याद थी। उन्होंने स्टेच्यू ऑफ ब्रांच नामक प्रसिद्ध पुस्तक का हिंदी अनुवाद पीतल की मूर्ति के नाम से किया था।
1952 के प्रथम विस चुनाव में वे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर तत्कालीन पलासी विस क्षेत्र से एमएलए निर्वाचित हुए। लेकिन विधानसभा में अपनी ही सरकार की गलत नीतियों के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री की आलोचना करने से वे नहीं डरे। पंडित जी को राजीनति की कुटिलता से सख्त नफरत थी।
लेकिन समाज व राजनीति के गलियारे में बेदाग छवि वाले पंडितजी का अंतिम क्षण अच्छे नहीं बीते। आर्थिक विपन्नता के कारण उन्होंने जीवन के आखिरी दिन बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर गुजारे। उनकी गरीबी से द्रवित तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने उन्हें कई बार पांच-पांच सौ रुपये भेजे थे। लेकिन स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रणी सेनानी व कई गुणों की खान पंडित पुण्यानंद झा आज इतिहास के पन्नों में खो गए हैं।
पंडितजी के नाम पर जिले तो क्या प्रखंड मुख्यालय जोकीहाट में भी एक प्रतिमा तक स्थापित नहीं है।

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