कुर्साकांटा (अररिया) : स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चरखा और खादी बापू का एक प्रमुख हथियार रहा था। देश को एक सूत्र में बांधने में इसकी अहम भूमिका रही। लेकिन आजादी मिलते ही 'खादीधारियों' ने ही दोनों की लुटिया डुबो दी। आज चरखा तो म्यूजियम की वस्तु बनकर रह गयी है वहीं खादी भंडार भी विलुप्त होने के कगार पर है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित कुर्साकांटा प्रखंड का कुआड़ी मोती लाल स्मारक भवन कभी स्वतंत्रता सेनानियों का शरणस्थली रहा था। जहां अंग्रेजों के अत्याचार से बचने के लिए स्वतंत्रता सेनानी जमा होते थे तथा आगे की रणनीति पर चर्चा किया करते थे। इसी दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने वहां चरखा चलाना शुरू किया और आगे चलकर यहां खादी भंडार की स्थापना हुई। लेकिन आज वह खादी भंडार विलुप्त हो रहा है। स्वतंत्रता सेनानियों का सपना आज चकनाचूर हो रहा है। आजादी मिलने के बाद
कुआड़ी स्थित खादी भंडार का निरीक्षण करने डा. राजेन्द्र प्रसाद स्वयं यहां आये थे। स्वतंत्रता सेनानी बैद्यनाथ चौधरी, बाबू बसंत सिंह, राम वृक्ष सिंह, जगलाल चौधरी, रामेश्वर यादव, गुलाब चन्द राय, कमला नंद विश्वास, द्विजदेनी तिवारी, रघुनंदन भगत जैसे स्वतंत्रता सेनानी इस खादी भंडार को प्रोत्साहित करने अक्सर यहां का दौरा किया करते थे।
लेकिन आज कुआड़ी का खादी भंडार कुछ स्वार्थी लोगों के चलते बंद हो गया है। वयोवृद्ध समाज सेवी रघुवीर यादव की मानें तो इसके लिए कर्मी, अधिकारी और यहां की जनता सभी जिम्मेदार हैं। वयोवृद्ध, स्वतंत्रता सेनानी, सीता राम गुप्ता जी कहते हैं कि कुआड़ी के खादी भंडार की एक समय में मिशाल दी जाती थी। लेकिन अधिकारी व नेता आज इस मूल आधार को ही भूल चुके हैं। यहां के लोगों ने पुन: खादी भंडार खोले जाने की मांग की है।
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