Wednesday, April 11, 2012

पशु धन भी बांझपन व कुपोषण के हो रहे शिकार


जोकीहाट(अररिया) : चारागाह की कमी, चिकित्सा का अभाव, हरे चारे की अनुप्लब्धता एवं सरकारी उदासीनता से क्षेत्र में दुधारु व अन्य पशुओं के लिए काल साबित हो रहा है। पशु लगातार कुपोषण एवं बांझपन के शिकार हो रहे हैं, जिससे दुधारु पशुओं में दूध उत्पादन क्षमता में भी कमी आने लगी है। परिणामस्वरूप निराश कृषक व पशुपालक पशुपालन पेशा से मुंह फेरने लगे हैं। मशीनी युग में गांव के परती मैदान व सरकारी जमीन की जोत आबाद होने से गाय, भैंस जैसे दुधारु पशुओं के लिए चारे की समस्या उत्पन्न हो गयी है। पहले एक चरवाहा दस से पन्द्रह मवेशियों को परती पड़े चरागाह में आसानी से चरा लेते थे। लेकिन अब मवेशियों के लिए चरागाह बचे ही नहीं हैं। पथराबाड़ी ,बहारबाड़ी ,बनकोरा ,अरतिया,धोबनियां, काकन, बगढरा, केसर्रा के पशुपालकों ने बताया कि अब मवेशी पालने में फायदा नहीं हो रहा है। क्योंकि चारे क ी कमी के कारण पशुओं का दूध घट गया है। जोकीहाट पशु चिकित्सक डॉ सुमन झा ने बताया कि वर्ष 2009 के आंकड़े के अनुसार प्रखंड क्षेत्र में एक लाख दस हजार गाय और भैंसें थी। लेकिन उसके बाद जिस अनुपात में दूधारु पशुओं की वृद्धि होनी चाहिए वैसा नहीं हो रहा है। डा झा ने बताया कि चारे में पोषक तत्वों की कमी के कारण पशुओं में बांझपन,दूध की कमी जैसी कई समस्याएं सामने आ रही है। पखंड के पशुपालक बताते हैं कि चारा की समस्या किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बनती जा रही है। हालांकि डा सुमन ने बताया कि अगर किसान दो फसलों के बीच एक चारे का फसल जैसे बरसीम,ल्यूसर्न ,जई, बाजरा ,हाईब्रिड नेपियर की खेती करें तो पशुओं के चारे की समस्या को दूर की जा सकती है तथा पशुओं को दुग्ध उत्पादन, कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है। पशुओं में बंाझपन की समस्या से किसान औने-पौने दाम में दूधारु पशुओं को बेच लेते हैं। गैरकी, चिरह,चकई ,महलगांव,बागनगर, के दर्जनों किसानों ने बताया कि पशुओं में बढ़ रहे बांझपन व दूध की कमी से वे अब पशुपालन से मुंह मोड़ने लगे हैं।

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