Saturday, May 19, 2012

विकलांग जुबैदा जगा रही शिक्षा की अलख



अररिया : एक हादसे में अपाहिज हुई जुबैदा उर्फ बुचिया जगा रही है बच्चों में शिक्षा की अलख। हालांकि गरीबी का दंश झेल रही बुचिया अब जिंदगी से हारने लगी है। बेसहारा जुबैदा अब मौत को गले लगाना चाहती है। बिस्तर पर लेटी नम आंखों से कभी अल्लाह को याद करती है तो कभी परिजनों से मौत की मांग करती है। लेकिन बदनसीब और बेसहारा जुबैदा को न तो इच्छा मृत्यु मिल रही है और न ही कोई मसीहा उसे जीवनदान देने के लिए आगे आ रहा है। अररिया शहर के आजाद नगर मुहल्ला वार्ड नंबर 19 की 26 वर्षीय मिडिल पास जुबैदा जिंदगी की जंग हारने लगी है। उसके नसीब में न तो मां की ममता का छांव और न ही सर पर हाथ फेरने वाला पिता मौजूद है। भाई का बोझ बनकर अब वह जिंदा नहीं रहना चाहती। नन्हीं सी प्यारी सी अपनी मां बाप की दुलारी जुबैदा अन्य बच्चियों की तरह ही कभी नटखट, चंचल और शोख थी। वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर आसमान की बुलंदियां छूना चाहती थी, लेकिन कुछ साल पहले एक मनहुस दिन उसके जीवन के सारे अरमान और सपने चकनाचूर हो गये। उस दिन एक दिन अपने टूटे हुए झोपड़ी में सोयी थी कि अचानक घर का छप्पर व धरन टूटकर उसके बदन पर गिर गया जिसमें उसकी कमर की हड्डी टूट गयी। इस घटना के बाद आज तक वह उठकर नहीं बैठ पायी। इसी दौरान उसके माता पिता की मौत हो गयी। गरीब भाई उसे लेकर दिल्ली तक उसे लेकर गया लेकिन वहां से भी वह निराश होकर लौट आया। विकलांग जुबैदा अपनी जिंदगी गुजारने के लिए शिक्षा का अलख जगाने को ठानी और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। बिस्तर पर लेटी-लेटी वह बच्चों को टयूशन पढ़ाकर अपना जीवन यापन करती है। आज जुबैदा के आंखों में अरमानों एवं सपनों की जगह आंसू है। चंचल शोख जुबैदा मानव जिंदा बुत बनी हुई है। उसे किसी मसीहा की तलाश है। जो इसकी तकदीर बदल सके।

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