Wednesday, January 5, 2011

जंगलों के लिए नहीं रोयेगा शिकारगाह

अररिया : अब शिकारगाह जंगलों के लिये नहीं रोएगा। बशर्ते, मनरेगा के तहत वृक्षारोपण व वन विभाग की महत्वाकांक्षी योजनाएं ठीक ठाक चलें। वर्ष 2010 में वन व पर्यावरण के लिहाज से अररिया के लिये कुछ अच्छी बातें हुई हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सिमराहा के निकट खैर वन के नेचुरल ग्रोथ से प्रभावित हुए तथा उन्होंने अधिकारियों को वहां के विशाल भूभाग में जंगल का विकास व उस जंगल का नाम अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु के नाम पर रेणु स्मृति वन रखने को कहा। तत्कालीन वन मंत्री रामजी ऋषिदेव ने अपने निर्वाचन क्षेत्र रानीगंज में करोड़ों की लागत वाली वन वाटिका के निर्माण की शुरूआत करवायी। वहीं, अब मनरेगा के तहत प्रशासन ने एक लाख पेड़ लगाने की शुरूआत की जा रही है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो अररिया में एक बार फिर सघन वन अस्तित्व में आ जायेंगे।
जानकारों की मानें तो वनों के लिहाज से अररिया सदियों अव्वल रहा है। पहले इसे टाइगरलैंड व शिकारगाह कहा जाता था। लेकिन विगत कुछ दशकों के दौरान अंधाधुंध वृक्ष संहार ने इसकी हरी जिंदगी छीन ली। शिकारगाह जंगलों के लिये रोने लगा। सरकारी पहल से अब जंगलों की स्थिति सुधर रही है। हालांकि अब भी बहुत कुछ किया जाना शेष है।
विदित हो कि इन दिनों अररिया जिले के मात्र 3.8 प्रतिशत हिस्से में सघन वन हैं। साठ के दशक में यहां एक दर्जन से अधिक सरकारी जंगल विकसित किये गये थे तथा रोपित वनों के मामले में यह बिहार में सबसे आगे था। एक दर्जन वन क्षेत्र व 678 हेक्टेयर वन। नेचुरल फारेस्ट अलग से। लेकिन वन विभाग की उदासीनता के कारण
रहिकपुर, सिमराहा व मदारगंज का कत्था जंगल, करियात का शीशम व कत्था, कुसियारगांव, हड़ियाबारा व माणिकपुर के बांस, आजमनगर व कुसियारगांव के सखुआ जंगल उजड़ गये। लेकिन विगत एक साल की चुस्ती रंग ला रही है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक बशीर अहमद खान ने स्वयं रुचि दिखलायी तथा जंगलात के महकमे के अधिकारी भी सक्रिय हुए। रहिकपुर व सिमराहा में जंगल फिर से आबाद हुए हैं। करियात में भी सूरत बदली है।
जिले में शीशम पेड़ों के सूखने के रोग को ठीक करने के लिये करोड़ों की लागत से करियात में हाइ टेक नर्सरी की स्थापना की गयी तथा कई एकड़ में क्लोनल सीड बागान डेवलप किया गया। इस साल वन विभाग के अधिकारी नर्सरी के चालू होने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं।
लेकिन अररिया की हरी जिंदगी की पीड़ाएं कई हैं। वन माफिया अब भी सक्रिय है। गांवों में पेड़ों की बेहिचक कटाई हो रही है। बगैर लाइसेंस आरा मिलें चल रही हैं। इतना ही नहीं नेपाल से भी लकड़ियों की तस्करी जारी है और वन अधिकारी चुप बने बैठे हैं। नेपाली लकड़ियां जिला मुख्यालय के आरा मिलों में स्टोर की जाती हैं। कहीं, वन अधिकारियों की मिली भगत तो नहीं? उम्मीद की एक किरण यह भी कि जिले के लोगों में वन व पर्यावरण को ले जागरूकता बढ़ रही है।

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