रानीगंज (अररिया) : कोसी की छाड़न फरियानी नदी के किनारे बसे रानीगंज में पौस पूर्णिमा मेला को ले लोगों का वहां पहुंचना शुरू हो गया है। ज्ञात हो कि पौष पूर्णिमा के अवसर पर लोक आस्था का पर्व उल्लास एवं धूम-धाम से मनाने की परंपरा काफी पुरानी है। पुसी-पूर्णिमा के नाम से जाना जाने वाले इस पर्व के मौके पर क्षेत्र में घर-घर पकवान खाने और खिलाने की प्रथा आज भी कायम है। सोमवार को लगने वाले इसे पर्व को लेकर जहां क्षेत्र वासियों का उत्साह चरम पर है। वहीं नदी किनारे हजारों वर्ग मीटर के क्षेत्र में लगने वाले एक दिनी मेले में दुकानदार काफी दूर-दूर से पहुंच रहे हैं। रानीगंज जैसे ग्रामीण क्षेत्र में इस लोक पर्व का अपना अलग पहचान है और सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है कुटीर उद्योग में तैयार सामानों की दुकानें। लकड़ी से बने सामान चौकी, बैंच, कुर्सी, टेबुल, फुस के घरों में लगने वाले खिड़की, दरवाजे, बांस की कमानी से बने टोकरी, सूप, डगरा, चटाई आदि की खरीददारी के लिए लोग पूर्व से ही इस मेले का इंतजार करते हैं। दस-दस कोस दूर उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम के लोग इस मेले में आते हैं तथा जन उपयोगी कुटीर उद्योग में तैयार सामानों को उम्मीद से सस्ते दामों में खरीद कर ले जाते हैं। लोग साल भर व्यवहार करने लायक झाड़ू, तेजपात, लकड़ी के फर्नीचर, मसाला वगैरह इस मेले में खरीदते हैं। ग्रामीण महिलाएं ताड़ की लकड़ी से बने समाठ व ओखड़ ही खरीदने इस मेले में पहुंचते हैं साथ ही सगे संबंधियों की मुलाकात भी इसी मेले में करते हैं। नेपाल के तराई क्षेत्र के पहाड़ी व्यापारी भी अपने सामानों के साथ इस मेले में आते हैं। पहाड़ी घास से विशेष रूप से तैयार फूल झारू, घरान का नारंगी, जंगली जड़ी-बूटी, मसाला आदि या पूजा की सामग्री विशेष रूप से ये व्यापारी अपने साथ लाते हैं। पूर्व में पहुंसरा स्टेट की महारानी इंद्रावती की भी इस मेले में विशेष अभिरुचि रहती थी। इस स्थान में रानी इन्द्रावती का कचहरी भी हुआ करता था। हालांकि अब इस मेले में कांसे मिश्रित धातु से बने बिदरी के बर्तन जिसकी ख्याती अन्य प्रदेशों में भी थी, अब नही मिलते परंतु लोहे से बने, भाला, चाकू, खुड़पी, हंसूआ, दबिया, कचिया आदि काफी मात्रा में मिलते हैं। कई माह पूर्व से इस मेले में बिकने वाले लकड़ी के सामानों के बनाने की तैयारी करने वाले बढ़ई दीना शर्मा बताते हैं कि इस एक दिनी मेले में 10 से 15 लाख रुपये का व्यापार होता है जो हजारों लोगों की खरीददारी से संभव हो पाता है।
Sunday, January 8, 2012
पौष पूर्णिमा मेला को ले सजा रानीगंज
रानीगंज (अररिया) : कोसी की छाड़न फरियानी नदी के किनारे बसे रानीगंज में पौस पूर्णिमा मेला को ले लोगों का वहां पहुंचना शुरू हो गया है। ज्ञात हो कि पौष पूर्णिमा के अवसर पर लोक आस्था का पर्व उल्लास एवं धूम-धाम से मनाने की परंपरा काफी पुरानी है। पुसी-पूर्णिमा के नाम से जाना जाने वाले इस पर्व के मौके पर क्षेत्र में घर-घर पकवान खाने और खिलाने की प्रथा आज भी कायम है। सोमवार को लगने वाले इसे पर्व को लेकर जहां क्षेत्र वासियों का उत्साह चरम पर है। वहीं नदी किनारे हजारों वर्ग मीटर के क्षेत्र में लगने वाले एक दिनी मेले में दुकानदार काफी दूर-दूर से पहुंच रहे हैं। रानीगंज जैसे ग्रामीण क्षेत्र में इस लोक पर्व का अपना अलग पहचान है और सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होता है कुटीर उद्योग में तैयार सामानों की दुकानें। लकड़ी से बने सामान चौकी, बैंच, कुर्सी, टेबुल, फुस के घरों में लगने वाले खिड़की, दरवाजे, बांस की कमानी से बने टोकरी, सूप, डगरा, चटाई आदि की खरीददारी के लिए लोग पूर्व से ही इस मेले का इंतजार करते हैं। दस-दस कोस दूर उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम के लोग इस मेले में आते हैं तथा जन उपयोगी कुटीर उद्योग में तैयार सामानों को उम्मीद से सस्ते दामों में खरीद कर ले जाते हैं। लोग साल भर व्यवहार करने लायक झाड़ू, तेजपात, लकड़ी के फर्नीचर, मसाला वगैरह इस मेले में खरीदते हैं। ग्रामीण महिलाएं ताड़ की लकड़ी से बने समाठ व ओखड़ ही खरीदने इस मेले में पहुंचते हैं साथ ही सगे संबंधियों की मुलाकात भी इसी मेले में करते हैं। नेपाल के तराई क्षेत्र के पहाड़ी व्यापारी भी अपने सामानों के साथ इस मेले में आते हैं। पहाड़ी घास से विशेष रूप से तैयार फूल झारू, घरान का नारंगी, जंगली जड़ी-बूटी, मसाला आदि या पूजा की सामग्री विशेष रूप से ये व्यापारी अपने साथ लाते हैं। पूर्व में पहुंसरा स्टेट की महारानी इंद्रावती की भी इस मेले में विशेष अभिरुचि रहती थी। इस स्थान में रानी इन्द्रावती का कचहरी भी हुआ करता था। हालांकि अब इस मेले में कांसे मिश्रित धातु से बने बिदरी के बर्तन जिसकी ख्याती अन्य प्रदेशों में भी थी, अब नही मिलते परंतु लोहे से बने, भाला, चाकू, खुड़पी, हंसूआ, दबिया, कचिया आदि काफी मात्रा में मिलते हैं। कई माह पूर्व से इस मेले में बिकने वाले लकड़ी के सामानों के बनाने की तैयारी करने वाले बढ़ई दीना शर्मा बताते हैं कि इस एक दिनी मेले में 10 से 15 लाख रुपये का व्यापार होता है जो हजारों लोगों की खरीददारी से संभव हो पाता है।
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