Sunday, April 8, 2012

किसानों का निकलेगा दिवाला, सरकार का भरेगा खजाना


रानीगंज (अररिया) : आज के प्रजातांत्रिक भारत में नीति निर्धारकों का दृष्टिकोण जन कल्याण से अधिक आर्थिक व व्यवसायिक हो गया है। इसका खामियाजा ग्रामीण किसानों को भुगतना पड़ रहा है। जमीन के निबंधन शुल्क में अप्रत्याशित वृद्धि से किसान एक बार फिर महाजनों के चंगुल में फंसने को विवश हो गए हैं। शादी-विवाह व अन्य आवश्यक कायरें के लिए अब किसानों की जमीन खरीदने के लिए लोग तैयार नहीं हो रहे हैं।
आजादी मिलने के बाद जब देश की शासन व्यवस्था का निर्धारण हुआ तो हमारे संविधान निर्माताओं ने उसका आधार जनकल्याणकारी बनाया। लेकिन आज सरकार का दृष्टिकोण बदल गया प्रतीत हो रहा है। आज सरकार जो फैसले ले रही है,उसका मुख्य उद्देश्य खजाना भरना रह गया है। चाहे स्वर्ण व्यवसायियों पर कर लगाने का मामला हो या किसानों के उपयोग की डीजल की मूल्य वृद्धि का फैसला या फिर जमीन निबंधन का बढ़ाया गया शुल्क, सभी आम लोग खासकर किसान व मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए परेशानी खड़ा करने वाला साबित हो रहा है। बिहार सरकार ने एक अप्रैल से शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की जमीन का जो मूल्यांकन लागू किया है वह वास्तविक स्थिति से काफी अधिक है। जिन किसानों को अपने खेतों से भले ही दो जून की रोटी मयस्सर नहीं हो रही है, सरकार की नजर में उस जमीन की कीमत लाखों में है। इस कारण जमीन खरीद बिक्री के लिए अब किसानों को मोटी रकम सरकारी खजाने में जमा कराना पड़ेगा। यद्यपि अररिया जिला निबंधन पदाधिकारी शिव कुमार का कहना है कि किसी भी क्षेत्र की जमीन का मूल्यांकन गत वर्ष के रिकार्ड को देख कर ही विभाग द्वारा किया जाता है।
बात सिर्फ अररिया की करें तो निबंधन कार्यालय से प्रखंड के पंचायतवार व्यवसायिक, वासगीत व कृषि योग्य जमीन का मूल्यांकन सूची जारी किया गया है। उसके अनुसार जमीन का मूल्य लगभग दोगुना से भी अधिक हो गया है। रानीगंज प्रखंड के हसनपुर पंचायत के किसानों के तीन फसला कृषि भूमि की कीमत 30 लाख रुपये प्रति एकड़ आंका गया है, जिसकी रजिस्ट्री कराने के लिए निबंधन शुल्क व स्टांप पेपर सहित किसानों को 2 लाख 70 हजार रुपये सरकारी खजाना में जमा करने होंगे। यह राशि एक एकड़ भूमि के वास्तविक कीमत से काफी अधिक है। निबंधन शुल्क की अप्रत्याशित वृद्धि से जरूरत मंद किसानों को जमीन का क्रय विक्रय कठिन हो गया है। इससे एक बार फिर जरूरत मंद किसान महाजनों की शरण में जाने को विवश हैं।
अररिया निबंधन कार्यालय से जारी मूल्यांकन सूची में गत वित्तीय वर्ष की तुलना में 30 से 45 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के साथ हसनपुर पंचायत में तीन फसला कृषि योग्य जमीन की कीमत 30 लाख रुपये प्रति एकड़ एवं बरबन्ना पंचायत के इसी कोटि के एक एकड़ भूमि की कीमत 25 लाख रुपये दर्शाया गया है। वहीं इन दोनों पंचायतों के मुख्य सड़क के किनारे की व्यवसायिक जमीन की कीमत 4 करोड़ रुपये प्रति एकड़ (4 लाख रुपये प्रति डिसमिल) विभाग ने आंका है। वहीं बसोवास की जमीन की भी कीमत गत वर्ष 75 हजार रुपये प्रति डिसमिल से बढ़ा कर 90 हजार रुपये कर दिया गया है। हसनपुर पंचायत के लघु कृषक रमेश मंडल एवं पूर्व मुखिया धर्मचन्द चौधरी बताते हैं कि विभाग द्वारा मनमाना निबंधन शुल्क बढ़ाये जाने से मौके पर उनकी जमीन कोई खरीदने के लिए तैयार नहीं होता है। उनका कहना है कि उनकी जमीन का वर्तमान मूल्य लाख 2 लाख से अधिक नहीं है किंतु सरकार ने उसे 30 लाख निर्धारित कर दिया है। किसान सहदेव यादव बताते हैं कि बेटी की शादी के लिए आज वो अपनी खेती योग्य जमीन बेचना चाहते हैं परंतु उसका खरीदार नहीं मिल रहा है क्योंकि जमीन की रजिस्ट्री कराने में जमीन की कीमत से तीन गुणा रुपया अधिक खर्च हो जाएगा। उन्होंने वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्यांकन निर्धारित किये जाने से इंकार किया है।

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