Tuesday, April 10, 2012

सफेद तबाही ने फिर तोड़ी किसानों की कमर


अररिया : जिले के किसान पिछले साल की भीषण ओला वृष्टि को भूल भी नही पाये थे कि आसमान से गिरी सफेद तबाही बर्बादी की ताजा दास्तान लिखी। विगत शुक्रवार को जिले के कई प्रखंडों में हुई भीषण ओला वृष्टि ने एक बार फिर किसानों की कमर तोड़ दी है। बड़े पैमाने पर खड़ी फसलें तबाह हो गयी हैं तथा किसान कुदरत के आगे बेबस नजर आ रहे हैं।
तबाही की यह दास्तान अब कुदरत का सालाना कार्यक्रम बन गयी है। बाढ़, सुखाड़, चक्रवाती तूफान के साथ-साथ आसमान से गिरने वाले विनाशकारी सफेद बर्फ के पत्थर। जिले के लोग परेशान व तबाह हैं।
शुक्रवार की ओला वृष्टि ने सिकटी, कुर्साकाटा, अररिया, पलासी, जोकीहाट, रानीगंज व नरपतगंज के गांवों में भारी तबाही मचायी। गेहूं, मकई व आम की फसल पूरी तरह तबाह हो गयी। यह बात अलग है कि किसानों के आंसू पोंछने की कोशिश जरूर शुरू हो गयी है। हालांकि इस कोशिश में मुआवजे का रूमाल फिलहाल गायब ही है। पिछले साल की क्षति को लेकर मिलने वाले मुआवजे को लेकर जोकीहाट व भरगामा के किसान आज भी आवाज उठाते रहते हैं।
सरकारी तंत्र किसानों के हित में बयान जरूर जारी करता है। लेकिन इस बयान को हकीकत में तब्दील करने के लिए क्या मशक्कत होती है, इसे आप तभी समझ सकते हैं जब आपकी फसल ओलावृष्टि से तबाह हो गयी हो या आपने डीजल के लिए अनुदान की आस लगा रखी होगी।
दुनियां के दूसरे देशों में आसमान में घुमड़ती सफेद तबाही को वायुयान की मदद से पानी में बदल दिया जाता है, लेकिन यहां तो मौसम की सामान्य पुर्वानुमान तक के लिए कोई कारगर सिस्टम कार्य नहीं कर रहा है।
ताजा ओलावृष्टि के कारण जिले के सीमावर्ती प्रखंडों में गहरा नुकसान पहुंचा है। सिकटी व पलासी के कुछ गांवों में तो एक एक किलो वजन तक के पत्थर गिरे।
इधर, जानकारों का मानना है कि विगत एक दशक के दौरान जिले में मौसम की अनिश्चितता को देखते हुए उच्च स्तरीय जांच जरूरी है। ताकि किसान अपनी फसल की पूर्व प्लानिंग बेहतर तरीके से कर सकें।

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