अररिया : अररिया को जिला बने 21 वर्ष होने को है। लेकिन उद्योग धंधे के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य यहां नहीं हो सका है। जिससे यहां के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सके। जिला उद्योग केंद्र भी अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में विफल ही साबित हुई है। जिस कारण जिले के लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीदों पर पानी फिर गया। उद्योग विहीन जिला होने के कारण यहां के लोग रोजाना सैकड़ों की संख्या में दिल्ली, पंजाब, लुधियाना, हरियाणा, मुंबई आदि बड़े शहरों के लिए पलायन कर रहे है। भारत सरकार द्वारा 1978 ई. में ही जिला उद्योग केंद्र की स्थापना की गयी। लेकिन केंद्र अभी तक जिले में लघु उद्योग इकाईयों की स्थापना में कोई उल्लेखनीय भूमिका अदा नहीं कर पाया है। केंद्र की स्थापना काल में इसके अधिकारी लीड बैंक के प्रबंधक पालिटेक्निक के व्याख्याता, खादी ग्रामोद्योग के प्रतिनिधि होते थे। परंतु वर्तमान में जिला उद्योग केंद्र राज्य सरकार के अधीन काम कर रही है। 1978 ई. से वित्तीय वर्ष 2007-08 तक तो भारत सरकार द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री रोजगार योजना के माध्यम से बेरोजगार युवक, युवतियों को बैंक से ऋण उपलब्ध करा कर स्वनियोजित किया जाता था। लेकिन वित्तीय वर्ष 08-09 से बंद कर दिया गया। 15 अगस्त 2008 को प्रधानमंत्री ने एक नयी योजना प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की घोषणा की। परंतु यह योजना जिले में अब तक सफल नहीं हो पायी है। जिला अपने 22 वें स्थापना दिवस मनाने की तैयारी में जुटा है। लेकिन इन लंबे अवधि में बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो पाया। इस दिशा में जनप्रतिनिधियों ने सिर्फ खोखली घोषणाएं की और प्रशासनिक स्तर से कागजी खानापूर्ति की गयी। उद्योग केंद्र के रिपोर्ट के अनुसार जिले में दस बड़े उद्योग कार्यरत है। लेकिन अधिक से अधिक फारबिसगंज अनुमंडल में है। इनमें से मुख्य रूप से हिमालय एग्रो केमिकल प्रा.लि. बिहार एग्रो इंड. के उत्पाद मिश्रित खाद है। जबकि शिव विजय उद्योग फारबिसगंज, गोलछा राइस मिल फारबिसगंज में चावल व राइस ब्रान का निर्माण होना है। वहीं गोलछा फ्लावर मिल प्रा.लि. फारबिसगंज में आटा, मैदा, सुजी तथा एसएम हैंडलूम उद्योग नरपतगंज में हैंडलूम वस्त्र का उत्पादन होता है। जिला मुख्यालय से सटे हड़ियाबाड़ा में सहारा बैंक द्वारा कुछ वर्ष पूर्व एक जूट आधारित प्रोजेक्ट लगाकर जिले के लोगों के मन में रोजगार की आस जगायी लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया। उक्त उद्योग की हालत भी खस्ता हो गयी और जिले के लोगो को आशा के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाया।
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बैंक टारगेट का निकाल रहे कबाड़ा: महाप्रबंधक
अररिया: सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित जिला जिस तरह उद्योग विहीन है। ऐसी परिस्थिति में उद्योग केंद्र एवं बैंक को आपसी समन्वय स्थापित कर ऋण उपलब्ध कराकर लोगों को रोजगार मुहैया कराना चाहिए। लेकिन सरकारी अधिकारी व विभाग इस ओर उदासीन नजर आ रहे है। वित्तीय वर्ष 2010-11 के दस माह का समय गुजर गया लेकिन पीएमईजीपी योजना का लक्ष्य पचास फीसदी भी पूरी नहीं हो पायी है। इस योजना के तहत जिला उद्योग केंद्र को 64, खादी ग्राम बोर्ड आयोग को 48, एवं खादी ग्रामोद्योग आयोग को 48 व्यक्तियों को वित्त पोषित कर रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य दिया गया लेकिन यह दो अंकों तक नहीं पहुंच पाया है। जब इस संबंध में जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक रामानंद प्र. शर्मा से पूछा गया तो वे इसका ठिकरा बैंकों पर फोड़ रहे है। उन्होंने बताया कि एसबीआई, सीबीआई बैंक छोड़कर यूबीजीबी, यूको आदि बैंक टारगेट का कबाड़ा निकाल रहे है। उन्होंने कहा कि केंद्र के द्वारा 140 आवेदन पत्र विभिन्न बैंकों को पोषित करने के लिए भेजा गया है। लेकिन उस आवेदन पर अब तक रिसपांस नहीं लिया गया।
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