कैप्शन-खेत से उखाड़ी जा रही मूंगफली की फसल, मूंगफली के पौधे अररिया, जागरण प्रतिनिधि : इसे व्यवस्था का बांझपन कहा जा सकता है। किसान मेहनत कर मूंगफली उपजाते हैं, फिर भी भूखे सोते हैं। स्थानीय स्तर पर कोई मंडी नहीं है। बाहर की मंडियों में बिचौलियों की मेहरबानी से इनका आर्थिक शोषण होता है। वहीं, पदाधिकारी आश्वासन के अलावा कुछ देते नहीं दिखते।
मंडी नहीं होने से परेशानी
यहां के किसान मेहनत कर बलुआही मिट्टी वाले खेतों में मूंगफली उपजाते हैं। लेकिन स्थानीय स्तर पर कोई मंडी नहीं होने के कारण उन्हें फसल की उचित कीमत नहीं मिल पाती। किसानों को फसल बेचने के लिए दलालों पर निर्भर रहना पड़ता है।
पैदावार में कमी नहीं
ज्ञात हो कि माणिकपुर व आसपास के कई गांव मूंगफली की भारी पैदावार के लिए जाने जाते हैं। जानकारों की मानें तो इस इलाके में मूंगफली की सलाना पैदावार तकरीबन पांच लाख क्विंटल तक की रही है। यहां की फसल कोलकता, सिलीगुड़ी, पटना व भागलपुर के अलावा उड़ीसा के बरहामपुर तथा यूपी की कई मंडियों में जाती रही है। लेकिन मंडियों में हो रहे किसानों के आर्थिक शोषण के कारण किसान अब इस खेती से दूरी बनाने लगे हैं। सूत्रों ने बताया कि क्षेत्र में किसानों व व्यापारियों के बीच कई बिचौलिए सक्रिय हैं, जो किसानों को फसल की उचित कीमत नहीं मिलने देते।
सरकारी सहायता नहीं मिली
सरकार व प्रशासन की ओर से भी मूंगफली की खेती करने वाले किसानों की दशा व दिशा सुधारने में दिलचस्पी नहीं दिखाई ता रही है। केन्द्र में राजग शासन के दौरान एक अधिकारी ने बर्मी विस्थापितों के गांव शुभंकरपुर में मूंगफली प्रसंस्करण की संभावना तलाशने के लिए गांव का दौरा भी किया था।
विमुख हो रहे किसान
रहिकपुर ठीलामोहन के किसान पिंटू भगत ने बताया कि उनके गांव में किसान अब मूंगफली की खेती से विमुख हो रहे हैं। इसमें 75 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई है। अब लोग हरी सब्जी की खेती की ओर जाने पर विवश हैं। शुभंकरपुर के प्रताप वर्मा ने बताया कि दस साल पहले एनएच के समीप करीब दो सौ खरीद केंद्र थे। अब उंगलियों पर गिने जाने लायक ही बचे हैं।
मूंगफली को बढ़ावा देने के होंगे उपाय : डीएओ
जिला कृषि पदाधिकारी नईम अशरफ ने बताया कि जिले में मूंगफली की खेती को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि जनवरी 2012 में आत्मा के तहत किसानों को मूंगफली की खेती का फ्री डिमोंस्ट्रेशन दिया जाएगा।
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