अररिया : आम आदमी को खुश देखना बड़ी खुशी होती है। इस खुशी में सहभागी होना शायद उससे बड़ी खुशी। लोक आस्था के महान पर्व छठ के अवसर पर विभिन्न घाटों पर खुशी का यह स्वरूप पूरी शिद्दत के साथ दिखा। लोक गायकों की टोली मस्त कलंदर के अंदाज में मृदंग, मजीरे व झंकार के साथ गायन में व्यस्त नजर आयी। यह उस खुशी की अभिव्यक्ति थी जो छठ जैसा लोक पर्व हर साल लेकर आता है। आम आदमी का कर्मकांड रहित पर्व।
फुलझड़ी व अनार की चकाचक रोशनी व पटाखों की गूंज में इन कलाकारों की कला अपने श्रेष्ठ रूप में सामने थी। ..राधा दूध लेकर मथुरा बाजार जाना चाहती हैं, लेकिन चंचल कान्हा नाव लेकर गायब हैं। ..सखि संग राधा चलल मथुरा बाजार, जायब यमुना के पार, कैसे उतरब पार? नैया लाओ कान्हों घटवार..। कन्हैया, मुझे दूध बांटने जाना है, जल्दी से नाव लेकर आओ। राधा व कृष्ण के इस मनुहार में लोग मस्त होकर झूमते नजर आये।
घाट पर एक श्रद्धालु अपने छोटे से बच्चे को लेकर आया है। बच्चा फुलझड़ी की रंगीन रोशनी के लिए मचल रहा है। इधर, बेलैय गांव का मृदंगिया परमानन दास पूरे लगन के साथ संगत कर रहा है। नटुवे के पैर मृदंग व ढोल की थाप पर थिरक रहे हैं। अररिया के मदनलाल पासवान, बेलैय के राम नारायण मंडल, बोकंतरी के शयाम लाल विश्वास सब के सब तार सप्तक में गायन व मजीरे के साथ ताल देने में मगन हैं। आम जन का उत्सवी मूड एक से बढ़ कर एक गीतों की प्रस्तुति कर रहा था। इसी बीच एक पटाखे का विस्फोट होता है। दर्शक थोड़ा बगल हट जाते हैं, लेकिन कीर्तन चालू रहता है। मृदंगिया की आवाज आती है, भइया, काहे भागते हैं, यह तो खुशी का विस्फोट है।
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