अररिया : मौलाना आजाद की 123वीं जयंती के मौके पर शुक्रवार की देर रात एक शानदार महफिले मुशायरा का आयोजन किया गया। अलहक एजुकेशनल ट्रस्ट अररिया के सौजन्य से गर्ल्स आइडियल एकेडमी आजाद नगर के परिसर में आयोजित इस महफिले मुशायरा का दर्शकों ने जमकर लुत्फ उठाया। मुशायरा की सदारत वरिष्ठ कवि सेवानिवृत अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जुबैरूल हसन गाफिल ने की। जबकि मुख्य अतिथि उनके पुत्र युवा शायर आयकर कमिश्नर मो. असलम इस मौके मौजूद थे। दिलकश और निराले अंदाज में मंच संचालन एसएच मासूम ने किया। अररिया के तमाम शायर लगभग इस मुशायरा में शिरकत की। शाने अररिया एचआर गाफिल द्वारा प्रस्तुत जिसे पहली फुर्सत में मैने दुआ दी, उसी ने मुझे सबसे पहले सजा दी, को दर्शकों ने खूब सराहा। युवा शायर मसीहउद्दीन साजी की गजल जाने मेरी चाहत को क्या हो गया, जिसे मैने चाहा देवता हो गया। फरमान की पंक्ति जुबान खामोश रहती है तो कलम की धार बोलती है। मुख्य अतिथि युवा शायर मो. असलम द्वारा प्रस्तुत प्रजा बैठी राम भरोसे, राम गए वनवास, शासन की ये राम कहानी कह गए तुलसीदास ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। महफिले मुशायरा के सदर जुबैरूल हसन गाफिल की पंक्ति अब से पहले जिंदगी का ऐसा तो चेहरा न था, था तो मैला ही मगर इतना भी मैला न था सुनकर दर्शक झूम उठे। इस मौके पर रजी अहमद तनहा, दीन रेजा, डा.एसआर झा, ठाकुर शंकर कुमार, रहबान अली राकेश, फरमान अली, रफी हैदर, अरशद अलीफ, हामिद हुसैन, मोइज उद्दीन, एहतशाम अजमी की शायरी से दर्शक देर रात तक लुत्फ अंदोज होते रहे। मुशायरा को सफल आयोजन में एमए मोजीब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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