अररिया : डेहटी पैक्स व इंदिरा आवास घोटाले की मार से त्रस्त अररिया जिले में गरीबी उन्मूलन के ताजा वार्षिक सफर की उपलब्धि सिफर ही रही है। इंदिरा आवास मद का करोड़ों रुपया डेहटी पैक्स में 'विलुप्त' हो गया, वहीं केंद्र सरकार ने इस साल मनरेगा मद में कोई राशि ही नहीं भेजी। इंदिरा आवास मद में भी तीन साल से पैसा नहीं आ रहा है। क्योंकि पहले से प्राप्त राशि का ही व्यय नहीं हो पाया था।
इन योजनाओं के अलावा जिले में गरीबी उन्मूलन की अन्य योजनाओं का हाल भी बेहाल है।
केंद्र द्वारा प्रारंभ मनरेगा योजना भी बदहाली की शिकार है। हालांकि इस योजना के तहत अररिया प्रखंड में पेड़ लगाने का कार्य सफलतापूर्वक किया गया, लेकिन कुर्साकाटा व सिकटी में वृक्षारोपण कार्यक्रम भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
उधर, मनरेगा अंतर्गत जिले के तमाम श्रमिकों को अब तक जाब कार्ड भी नहीं मिल पाया है। जिन्हें मिला भी उन्हें रोजगार मुहैया नहीं कराया जा रहा। लिहाजा श्रमिक पलायन पर कोई अंकुश नहीं लग पाया है।
सबसे खराब स्थिति इंदिरा आवास योजना की है। इस योजना को बिचौलियों, घोटालेबाजों, भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों व कर्मियों ने निगल लिया। घर बनाने के लिए आए गरीबों के पैसे से बिचौलियों की इमारतें खड़ी होती रही। गरीब सड़कों पर पामाल होते रहे। डेहटी पैक्स की फाइल इस बात का प्रमाण है कि कमीशनखोरी की लालच में भ्रष्ट अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों ने किस तरह इंदिरा आवास का पैसा निगल लिया।
हालांकि यह भी सच है कि गरीबों के पैसे गटकने वाले अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों पर कानून का सरकारी फंदा भी कस गया है। इस घोटाले की जद में अब तक एक दर्जन वरिष्ठ अधिकारी व एक दर्जन कर्मचारी आ चुके हैं। कई और अधिकारियों व सफेदपोशों के भी शिकंजे में आने की उम्मीद है। लेकिन गरीबों का घर तो नहीं बन पाया। इसकी जबाबदेही किस पर फिक्स होनी चाहिए?
..भइया, ई इंदिरा आवास बड़ी बला है। कौन इसे टच करे। डेहटी पैक्स में हुई डीएम की कार्रवाई के बाद अधिकारी इंदिरा आवास योजना से ही स्वयं को दूर रखने लगे। नतीजतन इस साल के पहले दस महीनों में भी कहीं आवास नहीं बना। साल के आखिर में जिलाधिकारी एम सरवणन के व्यक्तिगत प्रयास से आवास राशि वितरण के लिए शिविर लगाये गए और पहली बार गरीबों को बिचौलियामुक्त परिवेश में पैसा मिला। लेकिन इन शिविरों को तभी सफल माना जायेगा, जब आवासों का निर्माण हो जायेगा।
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत लोगों को स्वावलंबी बनाने का सपना भी बुरी तरह टूटा है। स्वयं सहायता समूह जड़ता की शिकार बनी हैं।
यह माना जा सकता है कि
जिले में गरीबी उन्मूलन की योजनाएं सफल नहीं हो पायी हैं।
जरा आंकड़ों पर गौर करें तो बात साफ हो जायेगी।
सन 1991 में इस जिले में 1.86 लाख परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करते थे। इस बीच गरीबी हटाने के नाम पर करोड़ों आये। इंदिरा आवास योजना भी इन्हीं दिनों प्रारंभ हुई। सुनिश्चित रोजगार योजना, संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, जवाहर रोजगार योजना सहित कई अन्य योजनाओं की शुरूआत भी इसी दौरान की गयी। लेकिन सत्ता व शासन के तमाम दावों के बावजूद जब 1997 के बीपीएल आंकड़े आए तो गरीब परिवारों की संख्या तीन लाख छह हजार हो गयी। गरीबी उन्मूलन के लिए पैसों का क्वांटम लगातार बढ़ता गया। पर अगले सर्वेक्षण में बीपीएल परिवारों की संख्या साढ़े चार लाख के पार हो गयी। आखिर क्यों बढ़ रहे गरीब?
जानकारों की मानें तो इस जिले में बीपीएल सूची में नाम दर्ज करवाना ताजा क्रेज है। निकाय चुनावों में वोट देने का पैमाना भी बीपीएल ही है। .. अमुक को क्यों दें वोट, उसने तो एक बीपीएल भी नहीं दिलवाया।
जिले में आज तक कोई प्रामाणिक बीपीएल सूची तक नहीं बन पायी है। नियमों के मुताबिक हर पांच साल पर बीपीएल सर्वे किया जाना चाहिए, लेकिन विगत डेढ़ दशक में मात्र एक सर्वे हुआ है। वह भी कई भ्रष्ट मुखिया जी लोगों तथा कंप्यूटर वालों की जानबूझ कर की गयी भूल के कारण भानुमती का पिटारा बनकर रह गया है। गरीब रोड पर हैं और संपन्न लोग अंत्योदय अन्नपूर्णा का माल उठा रहे हैं।
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