अररिया : एक ओर सरकार सर्वशिक्षा अभियान के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों की राशि खर्च करती है। वहीं दूसरी ओर शहरी क्षेत्र के वार्ड नंबर तीन आरएस स्थित मोमीन टोला के सैकड़ों गरीब बच्चे आज भी खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ने को विवश हैं। इसे देखने वाला कोई नहीं है। नवसृजित प्राथमिक विद्यालय मोमीन टोला रेलवे लाइन के पूरब हाईस्कूल के मैदान में चल रहा है। जहां लगभग सौ बच्चों को दो शिक्षक पढ़ाते है। भूमि उपलब्ध नहीं होने के कारण आज तक विद्यालय भवन नहीं बन पाया है। इतना ही नहीं सबसे अफसोस की बात तो यह है कि इस सरकारी विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को आज तक मध्याह्न भोजन का एक निवाला भी नहीं मिल पाया है न ही पोशाक और न ही कोई सुविधाएं। ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा विभाग के कोई बाबू आज तक इन गरीब बच्चों की सुधि लेने नहीं पहुंचे हैं। विद्यालय में पढ़ रही जुगनु एवं रूबी अपनी व्यथा सुनाते सुनाते रो पड़ती है। क्या ठंडा क्या गर्मी और बरसात हर मौसम में परेशानी झेलकर इन बच्चियों में पढ़ने की ललक है लेकिन शिक्षा विभाग मानो कुंभकर्णी नींद में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का हसीन सपना देखने में मशगुल है। जब शहरी क्षेत्र के विद्यालय की दशा इतनी बदतर है तो ग्रामीण क्षेत्र में चल रहे सरकारी विद्यालय का तो भगवान ही मालिक हैं। वार्ड आयुक्त रेखा देवी ने बताया कि जमीन के लिए प्रयास कर रही हूं लेकिन सरकारी जमीन भी यहां अतिक्रमित है।
Friday, February 10, 2012
खुले आसमान के नीचे पढ़ने को विवश छात्र
अररिया : एक ओर सरकार सर्वशिक्षा अभियान के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों की राशि खर्च करती है। वहीं दूसरी ओर शहरी क्षेत्र के वार्ड नंबर तीन आरएस स्थित मोमीन टोला के सैकड़ों गरीब बच्चे आज भी खुले आसमान के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ने को विवश हैं। इसे देखने वाला कोई नहीं है। नवसृजित प्राथमिक विद्यालय मोमीन टोला रेलवे लाइन के पूरब हाईस्कूल के मैदान में चल रहा है। जहां लगभग सौ बच्चों को दो शिक्षक पढ़ाते है। भूमि उपलब्ध नहीं होने के कारण आज तक विद्यालय भवन नहीं बन पाया है। इतना ही नहीं सबसे अफसोस की बात तो यह है कि इस सरकारी विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को आज तक मध्याह्न भोजन का एक निवाला भी नहीं मिल पाया है न ही पोशाक और न ही कोई सुविधाएं। ग्रामीणों ने बताया कि शिक्षा विभाग के कोई बाबू आज तक इन गरीब बच्चों की सुधि लेने नहीं पहुंचे हैं। विद्यालय में पढ़ रही जुगनु एवं रूबी अपनी व्यथा सुनाते सुनाते रो पड़ती है। क्या ठंडा क्या गर्मी और बरसात हर मौसम में परेशानी झेलकर इन बच्चियों में पढ़ने की ललक है लेकिन शिक्षा विभाग मानो कुंभकर्णी नींद में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का हसीन सपना देखने में मशगुल है। जब शहरी क्षेत्र के विद्यालय की दशा इतनी बदतर है तो ग्रामीण क्षेत्र में चल रहे सरकारी विद्यालय का तो भगवान ही मालिक हैं। वार्ड आयुक्त रेखा देवी ने बताया कि जमीन के लिए प्रयास कर रही हूं लेकिन सरकारी जमीन भी यहां अतिक्रमित है।
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