Saturday, February 11, 2012

ग्रामीण हाट खो रहे अपनी रौनक


जोकीहाट (अररिया): शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार व प्रशासनिक उदासीनता ने ग्रामीण हाट व बाजारों की रौनक फीकी कर दी है। प्रखंड के अधिकांश हाटों का क्षेत्रफल दिनोदिन सिमटता जा रहा है। इससे गांवों की आर्थिक आत्म निर्भरता कमजोर हो रही है।
प्रखंड में हाट की अवधारणा सदियों पुरानी है। यहां लगभग दो दर्जन हाट हैं। प्रखंड का भी मूल नाम जोकी है, लेकिन साप्ताहिक हाट लगने के कारण ही इसका नाम जोकीहाट हो गया। इसके अलावा उदाहाट, चीरह हाट, बारा हाट, सिकटिया हाट, चरघरिया हाट आदि सदियों पुराने हैं तथा ग्रामीण आबादी की आर्थिक आत्मनिर्भरता के सटीक उदाहरण रहे हैं। इन हाटों में जहां ग्रामीणों को अपनी उपज व अन्य चीजों को बेचने की सुविधा रहती थी, वहीं वे अपनी जरूरत का हर सामान भी यहां से प्राप्त कर लेते थे। लेकिन शहरीकरण ने इस इलाके से हाटों के कांसेप्ट को गहरा आघात पहुंचाया है। हाट अब सिकुड़ते जा रहे हैं।
वहीं हाटों की बिगड़ती स्थिति से ग्रामीण दुकानदार धीरे-धीरे बेरोजगार हो रहे हैं। केसर्रा पंचायत का चिमनी हाट एक समय काफी चर्चित था लेकिन आज उस हाट का अस्तित्व ही मिट गया है। मटियारी हाट,बगडहरा हाट, उदा हाट ,टेकनी हाट व सिकटिया जैसे हाट भी सरकारी उदासीनता के कारण अपनी चमक खोते दिख रहे हैं। मटियारी का हाट बहुत फेमस था, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह कटकर बकरा नदी में समा चुका है। गांव के दर्जनों लोग आज बेरोजगार हो गये हैं।
मटियारी हाट हस्तनिर्मित बांस के बने कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध था, लोग दूर-दूर से आकर यहां बांस निर्मित वस्तुएं खरीदते थे।
अतिक्रमण का अभिशाप भी ग्रामीण हाटों को समाप्त कर रहा है। अधिकांश हाटों की जमीन पर दबंग लोगों का कब्जा होते जा रहा है। यहां तक कि जोकीहाट जैसी जगह में भी आज अतिक्रमणकारियोंका कब्जा है। लेकिन प्रशासन इन सबसे बेखबर बना हुआ है।

0 comments:

Post a Comment