भरगामा(अररिया),: आम जीवन में बढ़ती व्यस्तता कहें या बदलते परिवेश का प्रभाव। अब ग्रामीण जीवन में भी मवेशी पालन के प्रति रूझान घटा है। रखरखाव, चारा व स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की समस्या हैं, जिस कारण लोग मवेशी पालन से विमुख हुए हैं। लिहाजा अब गांवों में भी कम हो रही है मवेशियों की संख्या।
कभी पर्याप्त थी मवेशियों की संख्या:
आनंद नगर खजुरी निवासी ब्रह्मदेव यादव एवं अठनियां टोला के भुवनेश्वर यादव बताते हैं कि एक समय पहले तक भरगामा में न केवल मवेशियों की पर्याप्त संख्या थी, बल्कि मवेशी पालन, दूध का उत्पाद आदि सफल व्यवसाय साबित हो रहा था। सबसे जो अहम है कंपोस्ट से खेतों में प्रतिवर्ष खाद भी उपलब्ध हो जाते थे तथा लोग मवेशी(बैल) से हल जोतकर खेती भी कर लेते थे। एक समय पहले तक केवल खजुरी पंचायत में मवेशियों की संख्या तीस हजार से ऊपर थी जो फिलवक्त छह से सात हजार के बीच सिमट कर रह गयी है। क्या हैं कारण:
पशुपालकों की मानें तो कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ ने मवेशियों की संख्या में अप्रत्याशित गिरावट लाकर इससे जुड़े कई व्यवसाय का नामोनिशान मिटा दिया। बाढ़ की त्रासदी को देखते हुए पशुपालकों ने औनै-पौने दाम में अपना मवेशी बेच दिया। इसके पीछे रखरखाव, चारे के साथ मवेशी के स्वास्थ्य की समस्या भी अहम रही। बाद में कृषि यांत्रिकी व उपकरणों के चलन ने मवेशी पालन को पुन: पनपने नहीं दिया।
नहीं हुए प्रशासनिक प्रयास:
मवेशियों की घटती संख्या को थामने का कोई प्रशासनिक स्तर पर भी प्रयास नहीं किया गया। जबकि मवेशियों के रखरखाव, चारे की व्यवस्था तथा पशुपालकों को प्रोत्साहन आदि देकर मवेशियों को गुम होने से बचाया जा सकता था। अब जबकि स्थिति गंभीर बन चुकी है, यहां भी कोई प्रशासनिक स्तर पर प्रयास होता नहीं दिख रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
प्रखंड कृषि पदाधिकारी आशुतोष कुमार भी मानते हैं कि कम हो रही मवेशियों की संख्या आगामी दिनों की एक गंभीर समस्या है। मवेशी की घट रही संख्या को संभालकर पशुपालकों को इसके प्रति जागरूक करने को लेकर प्रशासनिक स्तर पर प्रयास भी किया जा रहा है।
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