Friday, July 6, 2012

नशे की गिरफ्त में जा रहे नौनिहाल


अररिया : अररिया बस स्टैंड के निकट गुरुवार की सुबह दो कम उम्र के लड़के पहुंचते हैं। दोनों पालीथिन में सनफिक्स डालकर उसका सेवन करते हैं। फिर नशे में झूमते वहां मौजूद पान दुकान पर बैठे बुजुर्ग से कहते हैं: हए, बुढ़ा झामलाल, गांजा है क्या? बुजुर्ग दुकानदार अवाक हो जाता है। लेकिन बगल कादुकानदार दोनों को खदेड़ता है और वे भाग जाते हैं। यह तो एक बानगी है। दरअसल यहां के स्कूल जाने वाली उम्र के लड़कों के बीच दारू, गुटखा, पुड़िया, गांजा, भांग, अफीम, सिगरेट का चलन आम हो चुका है। अब बात सनफिक्स और दीगर नशों तक पहुंच चुकी है।
सनफिक्स एक प्रकार का एढेशिव(ट्यूब साटने वाला) सुलेशन है, जो इन दिनों नशेड़ियों के बीच बेहद लोकप्रिय हो रहा है। कम उम्र लड़के इस नशे के पीछे दीवाने हैं। लड़कों को गांजा भांग से भी कोई परहेज नहीं है। सब कुछ खुलेआम हो रहा है। गली-गली में शराब दुकान है, जहां मन तहां पीजिए। कोई रोक टोक नहीं।
जानकारों की मानें तो नशा करने वाले बच्चों में से अधिकांश समाज के निम्न व मध्यम वर्ग से आते हैं। अभिभावक रोजी-रोटी तलाश में लगे रहते हैं और बच्चे नशा के पीछे। बच्चों में बढ़ रही नशाखोरी की प्रवृति स्कूलिंग व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। अगर शत प्रतिशत लड़के स्कूल जा रहे हैं तो ये नशाखोर कौन हैं?
जानकार मानते हें कि गार्जियन की उपेक्षा ही बच्चों को नशे के समुद्र में धकेल देती है। अगर बच्चों का भविष्यसंवारना है तो उनकी सही काउंसिलिंग आवश्यक है। लेकिन जिंदगी की भागमभाग में ऐसा होता नहीं। वहीं, ऐसे अभिभावक भी हैं जो स्वयं शराब या अन्य नशे का सेवन करते हैं। तो उनके बच्चे सनफिक्स का सेवन नहीं तो और क्या करेंगे?
फोटो-05 एआरआर 12
कैप्शन- एसपी शिवदीप लांडे
पुलिस तत्पर, लेकिन आगे आए समाज: एसपी
इधर, पुलिस कप्तान शिवदीप लांडे का कहना है कि नशे की गुलामी सामाजिक अन्याय है तथा नशे का अवैध धंधा बेहद संगीन अपराध है। नशे के कारोबारियों पर लगाम कसने को पुलिस तत्पर है। हाल में गांजा, शराब आदि के अवैध कारोबारियों पर कार्रवाई की गयी है। लेकिन कम उम्र बच्चों को नशे की आगोश में जाने से बचाना ही होगा। इसके लिए समाज को आगे आना होगा।
सार्थक सामाजिक हस्तक्षेप की जरूरत
इस मामले में समाज व प्रबुद्ध तबके की चुप्पी आश्चर्यजनक है। समाजशास्त्री डा. सुबोध कुमार ठाकुर कहते हैं कि बच्चों के बीच पनप रही नशाखोरी जैसे आपराधिक रूझान पर अंकुश लगाना पुलिस व प्रशासन के बस की बात नहीं है। इसके लिए समाज को आगे आना ही होगा। उनका मानना है कि बिगड़ रही युवा पीढ़ी को नियंत्रित करने के लिए सार्थक सामाजिक हस्तक्षेप की जरूरत है।
नशेड़ियों के बीच पापुलर नशा के प्रकार:
-सनफिक्स को प्लास्टिक में डाल कर उसका सेवन
-चिलम में गांजा भर कर पीना
-सिगरेट से टोबैको झाड़ कर उसमें गांजा मिला कर पीना
-पसीने से दुर्गध कर रहे मौजे को पानी में डाल कर उस पानी का सेवन
-छिपकली को आग में पकाकर उसका सेवन
-दर्द निवारक आयोडैक्स को च्यवनप्रास की तरह खाना
-अफीम की गोलियां खाना
-चरस
-शराब व बीयर
-भांग
-गुटखा व पुड़िया
-कोरेक्स, फैंसीड्रिल, पेसोड्रिल व अन्य कफ सीरप
-पेट्रोल को कपड़ा में भिंगाकर उसे सूंघना

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