Tuesday, November 15, 2011

फीकी पड़ने लगी पान की लाली

अररिया : पान खाये सैंया हमार, सांवरी सुरतिया होठ लाल लाल.., फिल्म तीसरी कसम का यह गीत शायद आपको याद हो, लेकिन युवा वर्ग के बीच गुटखों के बढ़ते प्रसार और पान बनाने की सामग्री की बढ़ती कीमत के कारण अब होठों पर पान की लाली फीकी पड़ती दिख रही है।
संस्कृति का खास प्रतीक रहा है पान। मिथिला की संस्कृति में पान, मखान और मीठी बोली को कल्चर का खास इंडिकेटर माना जाता रहा है। आज भी गांवों में किसी के घर जाने पर पान से स्वागत होता है। पान को लेकर गांवों में कई गीत खासे प्रचलित हैं।
लोगों के बीच पान की पारंपरिक लोकप्रियता को भुनाने के उद्देश्य से हजारों की संख्या में कम पूंजी वाले व्यवसायी इससे जुड़े तथा उनमें से कईयों ने अच्छी कमाई की।
लेकिन गुटखा, पान मसाला व अन्य कृत्रिम माउथ फ्रेशनर्स की बढ़ती लोकप्रियता अब पान को 'खा' रही है। जिले में लगभग दो से तीन हजार पान दुकानें हैं। इन सभी में धड़ल्ले से गुटखा बिकता है। वहीं, ग्रामीण दुकानों व ग्रासरी शाप में भी खुलेआम गुटखा बेचा जाता है। इसके अलावा सिर्फ गुटखों की खेप लेकर दुकान चलाने वाले भी कई हैं।
बंगाल के तामलुक से आता है पान:
इस इलाके में पान बंगाल के तामलुक शहर (प्राचीन ताम्रलिप्ति)से आता है। तामलुक का मीठा पत्ता यहां बेहद लोकप्रिय है। वहीं, मगध क्षेत्र से भी कुछ दुकानों में मगही पत्ता मंगाया जाता है।
तामलुक के पान व्यापारी राधा नाथ साहू ने बताया कि इस इलाके में गुटखा की अधिक बिक्री के कारण पान की मांग में तेजी नहीं है। इन दिनों प्रति सप्ताह दो ट्रक ही पान आता है जिसके माध्यम से पूरे जिले में पान की सप्लाई होती है। यह स्थिति विगत कई साल से चली आ रही है।
वहीं, पान दुकानदारों का कहना है कि पान में प्रयुक्त होने वाले कत्था, सुपारी व अन्य मसालों की कीमत में बेहद इजाफा हुआ है। उस हिसाब से पान की कीमत नहीं मिलती। इस इलाके में आज भी बंगला पत्ता दो से तीन रुपये तथा मीठा पत्ता तीन से चार रुपये में ही बिकता है। लाल पान भंडार के लाल बाबू ने बताया कि अब तो केवल मेल के लिए ही पान बेच रहे हैं। युवा ग्राहक गुटखे की मांग ज्यादा करते हैं। छोटे छोटे लड़के भी गुटखा व टिंकू सुपारी खा रहे हैं। साइकिलों पर कान के पास मोबाइल दबाए मुंह में गुटखे का पूरा पाउच झाड़ रहे दर्जनों लड़के रोजाना दिख जायेंगे।
पान की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास नहीं:
अररिया जिले में पान की खेती की पर्याप्त संभावनाएं हैं। अररिया प्रखंड के कनैन व सलायगढ़ का पान प्रसिद्ध भी रहा है। वहीं, पलासी प्रखंड के सोहंदर व आसपास का क्षेत्र भी पान की खेती के लिए उपयुक्त बताया जाता है। लेकिन इस दिशा में प्रशासन के स्तर से प्रयास नहीं हो रहे। डेढ़ दशक पहले लीड बैंक ने पान किसानों के वित्तपोषण के ले स्कीम भी तैयार की थी, पर उस पर अमल नहीं हुआ।
पूरे प्रकरण का निष्कर्ष बिल्कुल साफ है: पान की लाली फीकी पड़ रही है और घातक गुटखा बढ़ रहा है। फैसला आपके हाथ है।

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