Thursday, December 15, 2011

कुदरत मेहरबान, फिर भी जमीन बेजान


अररिया : केवल जमीन ही बंजर नहीं होती, कभी कभी आदमी का मन भी बंजर हो जाता है। हालांकि जन्मजात कुछ भी नहीं होता। बाढ़ व प्राकृतिक आपदाएं जहां धरती की उर्वरा छीन ले जाती है, वहीं समय के दौर में मानव मन भी बंजर व नीरस बन जाता है। कुदरती साधनों से परिपूर्ण अररिया जिले की यह वर्तमान कथा है।
परती परिकथा की इस भूमि में संभावनाएं अपार हैं, लेकिन द्रुत विकास के लिए संभावनाओं की तलाश करने वाला चाहिए, विकास होना तय है। कृषि आधारित उद्योग, जलाशय निर्माण के माध्यम से मछली उद्योग, सब्जी प्रसंस्करण सहित कई अन्य क्षेत्र हैं, जिसमें यह जिला अव्वल रह सकता है।
लेकिन इलाके की उपेक्षा की जा रही है। जल संसाधन से जुड़े हाइड्रोलॉजी सर्वे का दायित्व केंद्र सरकार का है, लेकिन विडंबना है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल के बाद आज तक इस इलाके में हाइड्रोलॉजी सर्वे नहीं करवाया गया है।
सरकार व जनता दोनों को दोहरा घाटा हो रहा है। एक तो नदियों व जल परिवहन के बारे में लोग भुलते जा रहे हैं और दूसरे जिले में मौजूद जल संसाधन के बारे में हमारे पास कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। जल प्रबंधन से राजस्व का जो लाभ होता उसकी क्षति अलग है।
जिले की नदियों से करोड़ों घनमीटर पानी हर साल बह कर समुद्र में गिर जाता है, लेकिन खेतों में पटवन के लिए हायतोबा मची रहती है।
यह परिदृश्य अररिया सहित संपूर्ण कोसी इलाके का है, जहां उपजाऊ जमीन व दुनिया की सबसे अच्छी जल संपदा मौजूद है। फिर भी विकास के लिए पूरा इलाका सिसक रहा है। काम नहीं मिलने से केवल अररिया जिले से ही तीन से चार लाख युवा रोजी की तलाश में बाहर पलायन कर गए हैं।
नेतृत्व की दुर्बलता व प्रशासनिक तंत्र की उपेक्षा ने विकास की प्रचुर संभावनाओं के बावजूद अररिया सहित पूरे कोसी इलाके को पिछड़ा बना दिया है।
एक अनुमान के मुताबिक जल प्रबंधन पर ध्यान नहीं देने की वजह से लगभग पचास हजार एकड़ जमीन पूरी तरह बंजर बन चुकी है। हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि हर साल नदी के पेट में चली जाती है और बदले में जो जमीन निकल कर आती है वह किसी काम की नहीं होती। कुर्साकाटा, सिकटी व पलासी प्रखंडों में खेती की जमीन पर तेजी के साथ सिल्ट का डिपाजिट हो रहा है।
बाढ़ व सुखाड़ दोनों का दंश यहां के किसान झेलते हैं, पर इलाके में इनके निदान को ले कोई शोध संस्थान तक नहीं है। पूरा इलाका खेती व बागवानी पर आधारित है, पर इनके संव‌र्द्धन के लिए कोई इंस्टीच्यूट भी नहीं है।

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