Sunday, July 1, 2012

नहीं लगती बोली, सरहद पार जाती डोली


अररिया : यह दहेज के खिलाफ मौन क्रांति है। साथ ही सबक है, उन एनआरआइ दूल्हों के लिए, जो दहेज के लिए शादी तो करते हैं देसी दुल्हन से। मगर काम निकलते ही उसे छोड़ देते हैं जिंदगी भर तड़पने के लिए। अपना लेते हैं विदेशी मेम को। मगर यहां दहेज न तो प्रताड़ना का कारण बनता है, न ही शादी न होने की वजह। दरअसल नेपाल के तराई क्षेत्र में भारतीय क्षेत्रों की तरह लड़कों की बोलियां नहीं लगती। लिहाजा सीमावर्ती गांवों की हिंदुस्तानी बेटियों की डोलियां सरहद पार कर रही हैं। कह सकते हैं कि बिना दहेज दिए ही परदेशी हो रही हैं बेटियां।
नेपाल-भारत में रोटी-बेटी का संबंध जग-जाहिर है। भारतीय क्षेत्र में बढ़ते दहेज के दानव ने इस रिश्ते और प्रगाढ़ किया है। यद्यपि नेपाली समाज के रसूखदार परिवारों में दहेज का प्रचलन आम है। फिर भी नेपाल में दहेज प्रथा अभी शैशवास्था में है। यही वजह है कि भारत के सीमावर्ती गांवों से डोलियां सरहद पार जा रही हैं। सिकटी प्रखंड से सटे सीमा पार के गांवों सोनापुर, मुरारीपुर, कुचहा, कल्याणपुर, आमबाड़ी, मधुबनी, आमगाछी, मजरत, केलाबाड़ी आदि गांवों में भारतीय बेटियों की शादियां धूमधाम से हो रही है। इस वर्ष अप्रैल में सतबेर के सूर्यानंद मंडल की बेटी विभा की शादी नेपाल के मुरारीपुर में हुई है। लड़का कारोबारी है। शादी में दहेज के नाम पर चंद फर्नीचर और जेवरात दिए गए। लड़की ससुराल में हंसी-खुशी रह रही है। सतबेर के ही नरेश मंडल की बेटी निभा की शादी सोनापुर में हुई है। इन्हें भारत में शादी के नाम पर दहेज का दानव परेशान कर रहा था। मगर, नेपाल में हुई बेटी की शादी में उन्हें दहेज के नाम पर कुछ नहीं देना पड़ा। साम‌र्थ्य के अनुरूप जरूर उन्होंने बेटी-दामाद को कुछ उपहार दिए। सुपौल के महेंद्र गुप्ता ने सात साल पहले नेपाल के सेमापुर में बेटी ब्याही थी। उनका दामाद विराटनगर में कारोबारी है। वे बताते हैं कि हाल के वर्षो में नेपाल के आंतरिक हालात जरूर खराब हुए हैं। मगर, सामाजिक परिवेश में यह देश भारत से काफी आगे है। उनकी बेटी को दहेज के लिए कभी भी सताया नहीं गया।

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