Wednesday, February 8, 2012

गरीबी उन्मूलन की योजनाओं पर लगा बैंकों का ब्रेक


अररिया : बैंकों की उदासीनता के कारण गरीबी उन्मूलन संबंधी सरकारी घोषणाएं यहां बेअसर साबित हो रही हैं। चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही के दौरान स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना जैसी महत्वपूर्ण सरकारी स्कीम भी धरातल सूंघती नजर आयी। वहीं, इस दौरान अजा व अजजा समुदाय के विकास के लिए चलायी जा रही विशेष अंगीभूत योजना (स्पेशल कंपोनेंट स्कीम) तथा बेरोजगारों के रोजगार सृजन योजनाओं की उपलब्धि भी निराशाजनक ही रही।
इस साल के पहले छह महीनों में 66 स्वयं सहायता समूहों को ही वित्त पोषित किया जा सका। जबकि वैयक्तिक वित्त पोषण की उपलब्धि शून्य रही। जानकारों की मानें तो सामान्य रूप से बैंकों में बगैर बिचौलिए के काम बेहद मुश्किल होता है। वहीं, बैंकर सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में खास दिलचस्पी भी नहीं लेते।
आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो बात स्पष्ट होती है।
सबसे अधिक शाखाओं वाले भारतीय स्टेट बैंक को एसजीएसवाई के तहत 223 का वित्तपोषण लक्ष्य मिला। इसमें से 84 स्वयं सहायता समूहों व 139 व्यक्तियों को ऋण सुविधा मुहैया करवाना था। लेकिन बैंक की उपलब्धि मात्र 26 एसएचजी व 27 व्यक्ति की रही। इन्हें 2.23 लाख की वित्तीय मदद की गयी। इसी तरह सेंट्रल बैंक को 54 एसएचजी व 127 व्यक्तियों को ऋण देना था। लेकिन साल की पहली छमाही में उन्होंने केवल 14 समूह व 14 व्यक्ति को ऋण दिया। बैंक आफ बड़ौदा ने चार के एसएचजी लक्ष्य के विरुद्ध तीन, इलाहाबाद बैंक ने 5 एसएचजी लक्ष्य के विरुद्ध 8 तथा यूको बैंक ने 10 एसएचजी लक्ष्य के विरुद्ध 11 की उपलब्धि हासिल की।
विभिन्न मौकों पर बैंक के अधिकारी अररिया को पिछड़ा जिला बताते हैं तथा यहां काम करने के पर्याप्त स्कोप की बात करते हैं, लेकिन जब काम की बारी होती है तो जरा उपलब्धि देख लीजिए।
अजा अजजा समुदाय के विकास के लिए चलायी जाने वाली स्पेशल कंपोनेंट स्कीम भी बैंकों की उपेक्षा का शिकार रही है। वित्तीय वर्ष 2010-11 में इस योजना के तहत 242 लोगों ने वित्त पोषण के लिए आवेदन दिया। उनमें से मात्र 120 के आवेदन स्वीकृत किए गये। लेकिन जब राशि डिसवर्स करने की बात हुई तो मात्र 71 लोगों को ही ऋण व अनुदान की राशि मुहैया करवायी गयी। 123 आवेदन पेंडिंग रह गये।
अजाविनि के कार्यपालक पदाधिकारी ने विगत डीएलसीसी बैठक में बताया कि युबीजीबी सिमराहा द्वारा यह कह कर आवेदन लौटा दिए गये कि भैंस बकरी के लिए ऋण आवेदन स्वीकृत नहीं किया जा सकता। इस संबंध में जिला पदाधिकारी ने अजाविनि के कार्यपालक पदाधिकारी को मिसराहा जाकर मामले की जांच करने का आदेश दिया।
गरीबी उन्मूलन की योजनाओं में एक बात साफ तौर पर सामने आ रही है कि बैंकों में जितने आवेदन पहुंचते हैं, उनमें से ढेर सारे लंबित रह जाते हैं। एसजीएसवाई के तहत वर्ष 2009-10 में 622 का लक्ष्य था। 393 आवेदन बैंक भेजे गये। 205 को स्वीकृति मिली, लेकिन क्रेडिट व अनुदान मिला केवल 189 को। इसी तरह वर्ष 2010-11 में भी कई आवेदन पेंडिंग रह गये।
ऐसा प्रतीत होता है कि जिले के बैंकों ने सरकार की गरीबी उन्मूलन संबंधी योजनाओं पर ब्रेक लगा दिया है।

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