अररिया : जिले में सरकार ने मान्यता प्राप्त मदरसों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। जबकि मदरसों में सरकारी विद्यालय की तर्ज पर ही सरकारी सुविधाएं सरकार ने उपलब्ध करायी है। इसके बावजूद मदरसों में बच्चों की पढ़ाई लिखाई नहीं होती। वहीं रजिस्टर पर एवं मदरसे में बच्चों की उपस्थिति में काफी अंतर रहता है। जबकि इन सरकारी मदरसों में शिक्षकों की भी कोई कमी नहीं है। गौरतलब है कि सरकारी मदरसों का संचालन प्राइवेट मदरसा कमेटी द्वारा किया जाता है। सरकारी मदरसों की स्थिति का अंदाजा तो तब लगता है जब बच्चे की संख्या बीस पचीस से ज्यादा नहीं रहती है इसके विपरीत नियुक्त शिक्षकों की संख्या 10 से 12 तक रहती है। लेकिन फार्म भरने, एडमिट कार्ड लेने एवं परीक्षा के समय मदरसा में भीड़ देखते ही बनती है।
अररिया जिला में कुल 89 सरकारी मदरसा है जिसमें बिहार स्टेट मदरसा एजूकेशन बोर्ड द्वारा ओस्तानियां, फोकानियां, मौलवी, आलिम एवं फाजिल तक की डिग्री दी जाती है। जबकि प्राइवेट मदरसा जो अवाम के चंदा एवं मदद से चलता है उसमें छात्रों की उपस्थिति दो सौ से पांच सौ के करीब है। यहां पर पढ़ाई क स्तर भी बेहतर है। जबकि इन मदरसों में कार्यरत शिक्षकों को पैसा भी नहीं के बराबर मिलता है। बावजूद इसके इन मदरसों की रौनक देखते ही बनती है। हालांकि सरकारी मदरसों में सरकार के सर्वशिक्षा अभियान द्वारा मध्याह्न भोजन, पोशाक योजना, साइकिल योजना भी चलाई जाती है। तब आखिर क्या वजह है कि इस सरकारी मदरसों की स्थिति इतनी दयनीय है। इसको लेकर अभिभावक एवं आम लोग चिंतित है।
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