फारबिसगंज (अररिया) : जूट उत्पादन में अग्रणी होने के बावजूद चार दशक बाद भी जूट उद्योग के स्थापना का सपना पूरा नही हो पाया। कभी जूट के खरीद-फरोख्त में अपनी पहचान बनाने वाले इस इलाके के जूट किसानों का जूट की खेती पर से भी ध्यान हटता जा रहा है। बताया जाता है कि सत्तर के दशक में जूट उत्पादन की बढ़ावा देने के उद्देश्य फारबिसगंज प्रखंड मुख्यालय के समीप एक बड़े उद्योग की स्थापना का प्रयास भी किया गया था। इसी दौरान संजय गांधी द्वारा यहां जूट मिल की स्थापना के लिए शिलान्यास का कार्य भी किया गया। काफी समय तक उद्योग की स्थापना को लेकर यहां के किसान-व्यवसायी आशावान रहे। किंतु इस ओर कोई कारगर पहल नही किए जाने के कारण यह सपना अब तक पूरा नहीं हो पाया।
बताया जाता है कि केवल फारबिसगंज में अस्सी के दशक तक करीब तीन दर्जन छोटे बड़े जूट के गोला थे, जहां किसानों से जूट खरीदारी होती थी। इस क्षेत्र से उत्पादित जूट पश्चिम बंगाल के कोलकाता व अन्य स्थानों पर कार्यरत मिलों में प्रतिदिन हजारों क्विंटल के परिणाम में जाता था। जूट की खरीद के लिए विस्कोमान, जेसीआई के क्रय केन्द्र स्थापित थे। इस व्यवसाय में बड़े-बड़े व्यवसायी कार्यरत थे। किंतु आज स्थिति काफी बदल चुकी है। उद्योग तो लगे नही उपर से अधिकांश जूट गोले भी समय के साथ बंद हो चुके है। जेसीआई भी जूट खरीद दिलचस्पी नही ले रही है। इस कारण किसान भी जूट की खेती से विमुख हो रहे हैं।
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