Wednesday, February 8, 2012

फरियादी के सामने आ रहे कई सवाल


अररिया : अपनी विवशता के अंतिम सीमा के वक्त जब कोई फरियादी अररिया कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को सोचता है तो उसके सामने कई सवाल आ जाते है। उसके लिए सबसे बड़ा सवाल कि खर्च कितना होगा, तो दूसरा कि समय कितना लगेगा।
वैसे दीवानी एवं फौजदारी, दोनों तरह के मामले लोगों के लिए सिरदर्द बन रहे है। परंतु खासकर अपराधिक मामलों में तो फरियादी को सब कुछ सहना शायद नियति बना गया है। उसमें भी जब मामला जल्दी निपटाने का हो तो उसके लिए कहना हीं क्या है? इस तरह के गुपचुपी कई मामलों में देखने को मिल सकती है। क्या करें अब कहां जाये जैसी संकट सामने आती है। कोर्ट में अंतिम प्रपत्र का नही आना, मांझी गयी केश डायरी समय पर नही प्रस्तुत करना, लंबित मामलों में केश डायरी की अनुपलब्धता, गवाहों व आरोपियों की प्रतीक्षा में वर्षो से मामले लंबित होना आदि ढेर समस्यायें हैं जो तारीख दर तारीख मिलने की व्यवस्था संशय में ला दिया है।
कई अधिवक्ताओं का कहना है कि सिर्फ फरियादी ही इन कारणों से विवश नही हैं। कोर्ट के सामने भी कई विवशता झेलनी पड़ रही है।
अररिया कोर्ट में कई ऐसे मामले लंबित है जो करीब 25 से 30 वर्षो से गवाही, उपस्थिति आदि के लिए लंबित हैं। कई लंबित मामलों में केश डायरी की अनुपलब्धता वर्षो से है। तो कई छोटे-छोटे मामलों 10-15 वर्षो से गवाही आने की प्रतीक्षा में चल रहा है।
हालांकि हाल के दिनों में जिले में घपले-घोटाले का अच्छा पर्दाफाश हुआ है तथा कई घोटालेबाज कोर्ट के चक्कर में फंसे हैं। इन घोटालेबाजों ने तो अपने काम निपटाने को लेकर कोर्ट परिसर के हालात ही बदल दी है। उधर गरीब-गुरबे को इसी परिसर में एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है।
उधर जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों के बारे में लोगों की धारणा अलग है। केस दायर कीजिए और चैन की नींद सो जाइये। हेमियोपैथी की चाल में असर विखरेगा। अंतिम न्याय के लिए तो पीढि़यों को प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
इस निचली कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। परंतु लंबित मामलों के निपटाने के सार्थक पहल दूर की बाते कही जाती है। इस वर्ष करीब 26 हजार आपराधिक एवं करीब पांच हजार सिविल मामले लंबित है। जबकि पिछले वर्ष यहां कुल तीस हजार के करीब मामले लंबित थे। जबकि यहां के अधिकांश कोर्ट में सिविल एवं क्रिमिनल दोनों मामले सूने जाते हैं।
जब कोर्ट परिसर में काम निपटाने की बात आती है तो फरियादी के सामने कई सवाल घुरने लगता है। खर्च का हिसाब एक ऐसी बात बन जाती है, जिसे सहन व वहन करने के सवालों का जवाब फरियाद के संकट वाले भयावह स्थिति में खड़ा हो जाता है। फिर भी लोग हिम्मत व उम्मीद लिए बेहतर सोच है।

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