Tuesday, June 19, 2012

जिंदगी मौत न बन जाये, संभालो यारो!


अररिया : अररिया प्रखंड के महिषाकोल व आसपास के गांवों में पानी अक्सर मौत का सामान बनकर आता है। नदियों से घिरे इस इलाके में जल ही जीवन है और शायद मौत भी। इस इलाके में जिंदगी को संवारना है तो पहले पानी को संभालना होगा।
महिषाकोल, मेटन, झौआ, झमटा सहित आसपास के आधा दर्जन से अधिक गांवों की त्रासदी यह है कि यहां साल के नौ महीने जलाप्लावन जैसी स्थिति रहती है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांव में परमान के दोनों तरफ सड़क बन गयी है। लेकिन पुल नहीं बनने से सड़क का लाभ नहीं मिल रहा।
झमटा के अफजाल हुसैन हाशमी कहते हैं कि पीच रोड इधर भी है, उधर भी, लेकिन पुल नहीं है। कौन बनायेगा पुल? आम दिनों में लोग चचरी पुल पर नदी पार करते हैं। लगभग दो सौ मोटर साइकिलें प्रतिदिन इस रास्ते से गुजरती हैं। टैक्सी चालक जुबैर आलम ने बताया कि उनका घर नदी पार है। लिहाजा वहां तक जाने के लिए लगभग तीस किमी का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ता है।
बारिश के आते ही महिषाकोल घाट पर चचरी बह जाती है और लोगों को नाव से या तैरकर नदी पार करना पड़ता है। महिषाकोल के ही बुजुर्ग किसान मो. यासीन ने बताया कि नदी इस इलाके का जीवन है, लेकिन बारिश के दिनों में यही मौत बन जाती है। नदी पार करने में हर साल दुर्घटना होती है और भोलेभाले ग्रामीण मारे जाते हैं। लेकिन पुल नहीं बनता।
इस गांव में कटाव का दर्द भी गहरा है। एक दशक में लगभग पांच सौ परिवारों का घर कटकर नदी में समा गया है। गांव के सैकड़ों परिवार हर साल कटकर दोबारा बसने को विवश हो जाते हैं। विडंबना है कि सरकारी घोषणा के बाद भी इन्हें इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिलता।
बाक्स के लिए
1.
मेटन गांव में नहीं जाती बाहर से डोली
अररिया, जाप्र: नदियों के महाजाल से घिरे मेटन व आसपास के कई गांवों में एक सामाजिक अभिशाप बेहद तकलीफदेह है। यहां कई दशकों से न तो बाहर से कोई डोली आयी और न ही यहां से कोई डोली बाहर निकली। किसान मो. यासीन की मानें तो नदी के कारण इन गांवों में दुल्हन को लेकर कोई डोली नहीं जाती। क्योंकि बाहर रहने वाले लोग यहां शादी नहीं करना चाहते। तकरीबन दस बारह हजार की आबादी वाले इस इलाके में लगभग सारी शादियां गांव में ही हो जाती हैं।
2. महिषाकोल की लड़कियां बचपन से ही सीखती हैं तैरना
अररिया, जाप्र: महिषाकोल की फरजाना गांव के स्कूल की तीसरी कक्षा में पढ़ती है। वह अपने गांव के छोटे छोटे बच्चों के साथ नदी में तैरना सीख रही थी। परमान के घाट पर मौजूद जुबैर, मो. यासीन, अफजाल आदि ने बताया कि इस गांव में बच्चों को तैरने की ट्रेनिंग देना जरूरी है। क्योंकि इन गांवों में तैराकी जिंदा रहने की पहली शर्त है। अगर आपको तैरना नहीं आता है, तो हर पल जीवन पर खतरा मंडराता रहता है।

0 comments:

Post a Comment