फारबिसगंज (अररिया) : भारत-नेपाल अंतराष्ट्रीय सीमा पर तस्कर गिरोह नई ताकत के साथ एक बार फिर सक्रिय हो गये हैं। छोटे-बड़े अधिकांश मामलों में एसएसबी तथा कस्टम के द्वारा लाखों रुपये के सामनों को जब्त कर तस्करी का खुलासा किया जाता रहा है। जबकि इससे कहीं अधिक सामानों की तस्करी चोरी छुपे कर ली जाती है। कई बार तो लाखों रुपये के सामान पकड़े जाने के समय जब्त सामान के कागजात नही दिखाये जाते है। लेकिन पकड़े जाने के घंटों बाद अथवा दूसरे दिन जब्त और संदिग्ध सामान के क्लीयरेंस तथा अन्य कागजात प्रस्तुत कर सामनों के सही होने के भी दावे किये जाते है। आखिर सामान सही होते तो पकड़े जाने के समय कागजात क्यों नही दिखाये जाते? घंटों बाद कागजात कहां से आ जाता है जो संदिग्ध सामान को सही बताने के लिये प्रस्तुत किये जाते है।
फिलहाल बार्डर से इलेक्ट्रानिक गुड्स की बड़े पैमाने पर चोरी छिपे आवाजाही की जा रही है। जिसमें मोबाइल, चाइनीज बैट्री व अन्य सामान शामिल है। जिससे सरकारी राजस्व को चूना लगाया ही जा रहा है, देश विरोधी गतिविधियों को प्रश्रय मिलने से इंकार नही किया जा सकता है। हैरत की बात है कि जोगबनी बार्डर पर कस्टम कार्यालय रहने के बावजूद बड़े पैमाने पर तस्करी की जा रही है। तस्कर-अधिकारी-कर्मचारी गठजोड़ पूरे सिस्टम को कमजोर किये हुए है। रेलवे और सड़क दोनों मार्गो पर तस्करों का नेटवर्क अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। आखिर कब टूटेगा तस्करों का मजबूत नेटवर्क? आखिर किसके शह पर जारी है सरकार को राजस्व का चूना लगाने का तस्करी का गोरखधंधा?
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