जोकीहाट (अररिया) : प्रखंड क्षेत्र से बहने वाली बकरा नदी को अगर जोकीहाट का शोक, कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। बकरा नदी की बाढ़ प्रतिवर्ष दर्जनों गांव के सैकड़ों लोगों की खुशियां छीन लेती है। फलस्वरूप बकरा के कहर से दर्जनों लोग गांव छोड़कर हर वर्ष पलायन कर जाते हैं। कई तो आज भी सरकारी भवनों, स्कूलों में शरणार्थी की जिंदगी बसर कर रहे हैं। खासकर मझुवा, रहड़िया, फर्साडांगी, मटियारी, सतबिटा, करहरा, बलुवा जैसे गांव की बकरा ने तो सूरत ही बिगाड़ दी है। इन गांवों के किसान, गरीब, मजदूरों के घरबार तो प्रतिवर्ष नदी में विलीन होते ही हैं साथ-साथ खेती योग्य भूमि भी प्रतिवर्ष नदी के गर्भ में समा जाने से दर्जनों किसान मजदूरी करने को विवश हैं। पीड़ित ग्रामीण बच्चों के परवरिश के लिए हरियाणा, पंजाब पलायन कर जाते हैं। मझुवा गांव में दो चार छोटे बच्चे, जो धान काट रहे थे, के पिता आलम व मां बीबी जुबैदा ने बताया कि बकरा नदी में घर कटि गेली। बच्चा सब मदद करै छी तअ कौनों तरह दु डिसमील जमीन लैके घर बनेबे। घर रहैते तभी नी पढ़तै। काकन चौक पर कुछ मजदूरों ने बताया भैया रहड़िया घर छै। बकरा घर काटि देलकि। बाहर नै जेबअ तअ किरंग खैबअ आर बेटी केर शादी दिलैबी। आज इन गांव के लोग बुनियादी सुविधा जुटाने के कारण समाज की मुख्य धारा से पिछड़ते नजर आ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है पता नही सरकार के घर नदियों के कटान से गांवों को बचाने के लिए कोई उपाय है भी या नहीं।
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