कुसियारगांव (अररिया) : तनाव, अशिक्षा, कुपोषण, गरीबी के कारण इस अतिपिछड़े क्षेत्र अररिया जिले में यूं तो मृत्यु दर काफी अधिक है किंतु यहां खुद मौत को गले लगाने वालों या आत्म हत्या के प्रयास करने वाले की संख्या में इजाफा हुआ है। सदर अस्पताल अररिया में वर्ष 2011 में विषपान पीड़ित 93 मरीजों का इलाज किया गया। इनमें 42 महिला, 34 पुरुष, 17 बच्चे शामिल हैं।
वहीं अलग-अलग दो जगहों पर आठ लोग विषाक्त भोजन के शिकार हुए जिनमें कुल मिला कर चार महिला की मौत हुई। विषपान मरीजों के परिजन, रोगी की मौत होने की हालत में अधिकांश शव अस्पताल से लेकर भाग जाते हैं। इन मामलों में से अधिकतर की खबर चिकित्सक द्वारा पुलिस को पुलिस तक जाती ही नही। सिर्फ अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज है। हालात यह है कि पुलिस भी इसे कोई खास महत्व नहीं देती।
वहीं प्रभारी नगर थाना अध्यक्ष ब्रजेश पाठक ने बताया कि ऐसे मरीजों का ओडी आने पर थाना में स्टेशन डायरी दर्ज कर संबंधित थाना को भेज दिया जाता है, फिर अनुसंधान के बाद केस की फाइल एसडीओ के पास समर्पित किया जाता है। दंड पर मुआवजे के लिए, ऐसे मरीजों को अस्पतालों में भर्ती करने पर पांच हजार से लेकर दस हजार रुपया तक खर्च पड़ता है। परिजनों के मुताबिक सारी दवा बाहर से लाना पड़ता है। हालांकि अस्पताल प्रबंधक का कहना है कि कभी-कभी दवा की कमी के कारण ऐसा हो जाता है।
विषपान करने में जिले के पलासी में 12 महिला व 10 पुरुष, जोकीहाट के 6 महिला व 5 पुरुष, नगर थाना क्षेत्र के 6 महिला, 3 पुरुष शामिल है।
इस संबंध में प्रभारी सीएस डा. अखलेश शर्मा कहते हैं कि इस जिले में आत्महत्या का मामला आम हो गया है। हालांकि वे अस्पताल में दवा की कमी होने से इंकार करते है तथा कहते हैं कि जो लोग जहर का ज्यादा डोज ले लेते हैं उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है। तनाव, गरीबी, अशिक्षा के कारण आत्महत्या का प्रयास करता है। विषपान का रास्ता ही चुनने के संबंध में वे बताते हैं कि चूहा मारने की दवा, खेतों में देने वाले कीटनाशक दवा आसानी से हर जगह उपलब्ध हो जाता है और इसी से प्रभावित अधिकांश मरीज अस्पताल पहुंचते हैं।
0 comments:
Post a Comment